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________________ anmamiwwwwwwmarwaruwawwamiram .www.............. Palaskistinlonlishalilabilialelalitatistakalukalesterosatalab hindilamistakaalikhaalitie s अग्रतत्रत्रतपणप्रयत्नणवत्रतत्रटनमनपस्नग्रनयनत्रणमनननननन* gostikdkekshetakaladkakakakakakakakakakakakakakakesedledakakakakotdealedtotrekstakekakakakakakistakesidecheedakaka kakakakakakaktish जैन-रत्नसार को दिया । देने की इच्छा से सदोष वस्तु को निर्दोष कही । देने की। इच्छा से पराई वस्तु को अपनी कही । न देने की इच्छा से निर्दोष वस्तु को सदोष कही । न देने की इच्छा से अपनी वस्तु को पराई कही। गोचरी के समय इधर उधर हो गया । गोचरी का समय टाला । बेवक्त । साधु महाराज को प्रार्थना की। आये हुए गुणवान् की भक्ति न की। शक्ति के होते हुए स्वामि-वात्सल्य न किया। अन्य किसी धर्मक्षेत्र को पड़ता देख मदद न की। दीनदुखी की मदद न की । दीनदुखी की अनुकम्पान की । इत्यादि बारहवें अतिथि सम्विभाग व्रत सम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्खी दिवसमें सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया कर मिच्छामि दुक्कडं । संलेषणा के पांच अतिचार-इहलोए परलोए.' इहलागा संसप्पओगे। परलोगासंसप्पओगे। जीविआसंसप्पओगे । मरणासंसप्पओगे। कामभोगासंसप्पओगे। धर्म के प्रभाव से इह लोक सम्बन्धी राज ऋद्धि भोगादि की वांछा की । परलोक में देवदेवेन्द्र चक्रवर्ती आदि पदवी की। इच्छा की । सुखी अवस्था में जीने की इच्छा की । दुःख आने पर मरने की वांछा की। इत्यादि संलेषणाबत सम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्खी दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया कर मिच्छामि दुक्कडं। तपाचार के बारह भेद-छ बाह्य छ अभ्यन्तर । “अणसणमुणो अरिआ."-अनशन शक्ति के होते हुए पर्व तिथि को उपवास आदि तप न किया । उनोदरी-दो चार ग्रास कम न खाये । वृत्ति संक्षेप द्रव्य खानेकी वस्तुओं का संक्षेप न किया । रस-विगय त्याग न किया । कायक्लेश-लोच आदि कष्ट न कियो । संलीनता-अंगोपांग का संकोच न किया। पच्चक्खाण तोड़ा । भोजन करते समय एकासणा आयम्बिल प्रमुख में चौकी, पटड़ा, अखला आदि हिलता ठीक न किया । पञ्चक्खाण करना भुलाया, बैठते नवकार न पढ़ा । उठते पच्चक्खाण न किया । नीवी, आयम्बिल, उपवास आदि तपमें कच्चा पानी पिया । वमन ( उल्टी) हुआ । इत्यादि बाह्य तप লম্বস্বত্ব স্বত্বশ্বরুক্ষত্মঘলঙ্কাল ঙ্কার Minikalnlines-disdalsoiletaliatbihalokomakalinsahi t yagdyabababi
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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