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________________ kxstoletestatisakhsbaahubabbabloiletbabyC -Inslalalalsotiladarashbatasakatokhastmaste स्तवन-विभाग ५६३ tour..............teioskatinathkhaliphakathanks fotahik lalahbhhhhhhhhhhhhalphakThapotohatha hotaoh lahrkhalafaltake कुशल सूरिजी स्तवन कुशल गुरुदेव के दरसन, मेरा दिल होत है परसन । जगत में आप सम कोई, न देखा नयन भर जोई ॥१॥ विरुद भूमंडले गाजे, परसतां * पाप सह भाजे । पूजतां सुखसम्पदा पावें, अचिंती लच्छि घर आवे॥२॥ इके मुख गुण कहूं केतां, मेरे हिये ज्ञान नहिं एता। लालचन्द की अरज सुन लीजे, चरण की भक्ति मोहि दीजे ॥३॥ मणिधारी श्री जिनचन्द्र सूरि स्तवन ( तुम तो भले विराजो जी, मणिधारी महाराज दिल्लीमें भले विराजो जी) नर नारी मिल मंदिर आवें, पूजा आन रचावें । अष्ट द्रव्य पूजा में लावें, मन वंछित फल पावें ॥१॥ आशा पूरो संकट चूरो, ये है विरुद तुम्हारो । आधि व्याधि सब दुरे नाशो, सुख सम्पति दे तारो ॥२॥ वाद विवादें जन जय पावें, तारें जलधि जहाज । वाट घाट भय पीड़ा भांजे, समरण श्री गुरुराज ॥३॥ पुत्र पुनीता परम विनीता, रूपे लक्ष्मी नार । ऋद्धि सिद्धि सुख सम्पति दीजे, भला भरजो भंडार ॥४॥ सेवक ऊपर करुणा कर जो, महिर नजर तुम धरजो । लक्ष्मी लीला घरमें भरजो, एतो काम तुम करजो ॥५॥ गुर्वाष्टकम् महा ज्ञानी ध्यानी तुम विदित दानी प्रवर थे, धरा धारा के थे तुम तरुण तैराक मति मन् । तुम्हें ध्याता हूं मैं विमल मन से प्राणपण से, दयाब्धे ! दुःखों का दमन अब आचार्य ! करदो ॥१॥ पता क्या था ? पीताम्बर युगलधारी न गुरु हैं, बड़े मायी वे हैं कपट रचना पूर्ण पटु हैं । बतायी थी सच्ची शरण तुमने नाथ मुझको, दयाब्धे ! दुःखों का दमन अब आचार्य ! करदो ॥२॥ रहेंगे संसारी भ्रमण करते नित्यतम में, भला ! 1. होगा कैसे गुरु प्रवर ! उद्धार उनका । कृपा भीक्षा देके करुण वरुणागार ३ अपनी, दयाब्धे ! दुःखों का दमन अब आचार्य ! करदो ॥३॥ सुनेंगे स्वादेंगे। । यह गुरुवाष्टक तथा स्तवन जं० यु० प्र० ० भट्टारक श्री पूज्यजी श्री जिनरत्न सूरिजी फे शिप्य जैनगुरु पं०प्र० यति सूर्य्यमल्ल का बनाया हुआ है। Mattilatitishanikilitical leadershitalueskilడుకుండుడుడdikitikkattitthalు వచనము నందు చదువు మరము 10thitkakti lalath total 11, that is + 13
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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