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________________ I I I .INirerthath स्तवन-विभाग . ५०७ दियो तसु थंभणो जल ऊपरी रे पाज करी पाथर तणी, गढ़ लंका रे साघेवा सीता भणी गढ़ लंक साधी सीत आणी तेण बन आव्या बली, दिन आठ अठाइ महोच्छव किया मन पूगी रली, श्री राम राजा शुद्ध ३ श्रावक विनीता नगरी बसे, बीसमा जिनवर तणे बार इम थया गुरु उपदिसे ॥इण अनुक्रम रे केतहो काल गयो वही, ते प्रतिमा रे तिन बन 1 में निश्चल रही । इण अवसर रे इन्द तणे आयस करी, सायर तट रे सोवन मय द्वारा पुरी, द्वारका नगरी कृष्ण राजा अई भरत तणो धणी, तिहां बसे यादव कोडि छप्पन बहे आग्या जिन तणी, तिण काल तिण बन तेह तीरथ तेहनी महिमा सुणी, सारङ्ग प्राणी भाव आणी आव्या तिहां यात्रा । भणी ॥४॥ ॥ ढाल ॥ आव्यो तिहां नरहर जिनहर मन उल्लास मनमें आनन्दे बंदे थंभण पास, पेखे अति नवली पूजा प्रभुजिने देह, एकेणे कीधी इम मन इथयो संदेह, संदेह थयो अटवी चिहुं पासे नहीं मानव संचार, केण करी 5 विद्याधर सुरवर पूजा सतर प्रकार, इसो बिमासी मंडप अंतर रह्या युगपते ३ ठाम, मध्यरात पाताले आवी बासग बिसहर साम ॥५॥ तिहां आवी प्रणमें देनाटक आदेश, मिलि नागकुमारी बिरचे अद्भुत वेष, शक्रस्तवपभणे जाण्यों श्रावक एह, हरि प्रगट्यो ततखिण, साहमी तणइ ससनेह, ससनेह वासग कृष्ण नरेसर बैठा बिम्ब बखाणे, ए श्रीजिनवर पास जिणेसर आदि न कोइ जाणे, असी सहस वर सामें पूज्या जेहुन्ता पायाले, बरण एक : प्रासाद कराव्यो थाप्या एह जिनाले ॥६॥ सह बात कहीने बासग गयो . पायाले, श्रीकृष्ण नरेसर मन चिन्तइ ततकाले, जो एहवो तीरथ हुबे द्वारिका : मझार तो जाणूं नरभव सफल थयो अवतार, सफल जनम करि वानं काजे तह विम्ब तिहां आणे श्रीद्वारिका, हेममय जिणवर बाप्या प्रगट प्रमाणे । '. घणं काल पूजा तहां पामी, करम निकाचित जाणी, श्रावकने सुपनान्तर । आवी. देव बड़े इम वाणी ॥७॥ प्रभु प्रतिमा बाहण, लेइ समुद्र मझार । ki.dirake-trolorbler intel.lal hiadrintainst intolertelarlidao
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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