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________________ e.hteliasYkartialorkhalobta salutatestantsashatottarobiolkaleBORoosing Glamapalisong.orlosonipalalpananlaolananloonliularlaenouslimusunlaobhilashaswatlabsarkarkelasavasanacapoatolasakhamaanawaibarhwani.tamansaharanion... __ जैन-रनसार सभी, भावी जिन चौवीस । सिद्ध रमण पद पावसी, ए भाखें जगदीश ॥९॥ चरम जिनेसर दोय वली, तेहना तीन कल्याण । पासे रेवत गिरिवरें, बोले गणधर वांण ॥१०॥ जम्मा रुकमणी नन्दनो, राजमती रह नेम । ढंढण मुनि इम बहु हुआ, कहतां तो आवे प्रेम ॥११॥ एहवी मोटी जेहनी, महिमा न आवे पार । सिद्ध रमण पद एह छे, आपे भवजल पार ॥१२॥ विधि सं जे नर इण गिरी, यात्रा श्री गिरनार । अम्बा तसु सानिध करे, पूरे पुण्य भण्डार ॥१३॥ घर बैठे जे नर करे, भावे श्री गिरनार । मन वंछित फल पावसी, जावे भव जल पार ॥१४॥ अठार से सड़सठ समें, चैत्री पूनम आज । श्री संघ सानिध शुभमने, कीनो आतम काज ॥१५॥ अखय* सदा ए गिरि रहें, नामे शिव सुख कंद । भव भव दीजे सेवना, भाखें श्रीजिनचंद ॥१६॥ श्रीथम्भण पार्श्वनाथजीका स्तवन प्रभु प्रणम रे पास जिणेसर थंभणो, गुण गाइ वार मुझ मन उल्लट अति धणो, ज्ञानी बिगरे एहनी आदिन को लहे, तोही पिणरे गीता रथ। गुरु इम कहे । इम कहे शास्त्र तणे प्रमाणे, राम दशरथ नंदने, बंदवा पाजे शीत काजे, समुद्र तट ए कण बनें, तिहां रह्या बान्धव राम लक्ष्मण, साथ सेना अति घणी,प्रासाद एक उत्तंग तोरण, थापणा जिणवर तणी ॥१॥ ॥ ढाल || तिहां मूरति रे मूल गम्भारे पासनी, मन वंछित रे आशा पूरे आसनी, ते राजा रे दिन प्रति पूजा साचवे, करजोड़ी रे बे बांधव इम बीनवे, बीनवे स्वामी तुम्ह प्रसादे । जलधि जल थंभे किमें, तो पाज बांधू .लंक साधू इम कही प्रभु पाय नमें, बहु पूज करतां ध्यान धरता, सात मास गया जिसे । नव दिवस अधिका थया ऊपर, जलधि जल थंम्यो तिसें ॥२॥ ए अति सयरे अचरिज पेख्यो प्रभु तणो, तिण कारण रे, नाम ____ * यह स्तवन जं० यु० प्र० बृ० भट्टारक श्री पूज्यजी श्री जिन चन्द्रसूरीजी महाराज ने सं० १८६७ चैत्री पूनमको बनाया है। . aloNGSaibuttotalblashatanAmlahani laiallullakitaltahotstatestant s ललनवलपलबलमयललगायव्ययप्रयजनबलपलमलबऋषक
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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