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________________ tatt आरती- विभाग शान्तिनाथ भगवानकी आरती जय जय आति शान्ति तुम्हारी, तोरा चरणकमलकी जाऊं बलिहारी ॥ जय० १ ॥ विश्वसेन अचिराजीके नंदा, शांतिनाथ मुख पूनम चन्दा ॥ जय० २ ॥ चालीस धनुष सोवन मय काया, मृगलंछन प्रभु चरण सुहाया ॥ जय० ३ ॥ चक्रवर्ति प्रभु पंचम सोहें, सोलम जिनवर जग सहु मोहे ॥ जय० ४ || मंगल आरति भोरहि कीजे, जनम जनम को लाहो लीजे ॥ जय० ५ ॥ करजोड़ी सेवक गुण गावें, सो नरनारी अमर पद पावें ॥ जय० ६ ॥ संध्या आरती ऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन, सुमति पदम श्री सुपासकी जय । महाराज कि दीनदयाल कि आरति कीजे ॥ चन्द सुविधि शीतल श्रेयांसा वासुपूज्य जय, जय जिनराज कि ॥ जय० १ ॥ विमल अनन्त धर्म हितकारी, जय जय शान्तिनाथ सुखकारी ॥ जय० २ ॥ कुंथुनाथ अर मल्लि मुनिसुव्रत, जिनवर नमि नमि सोवन काय कि ॥ जय० ३ ॥ नेमिनाथ प्रभु पार्श्व चिन्तामणि, वर्द्धमान भव पार कि ॥ जय० ४ कंचन आरति बहुविधि सजकर, लीजे अंग उछाह की ॥ जय० ५ ॥ आरति करत हैं, आवागमन निवार कि ॥ जय० ६ || सकल संघ मिल नवपद आरती जय जय जग जन बंछित पूरण, सुरतरु अभिरामी । आतम रूप विमल कर तारक अनुभव करिनामी ॥ जय जय जग सारा, जय जय जग नारा 1 आरती पार उतारा, सिद्धचक्र सुखकारा ||१|| जगनायक जगगुरु जिन चंदा, भज श्री भगवंता | आतमराम रमा सुखभोगी, सिद्धाजयवंता ||२|| पंचाचार दिप आचारज, जुगवर गुणधारी । धारक वाचक सूत्र अर्थना,
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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