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________________ जैन - रत्नसार NI HINN ४६२ HIN WINI M wwwwww टोपीवाला, दिलमें यह बात बिचारी ॥ सु० ४ ॥ मझारी । गोरा फिरंगी जैन श्वेताम्बर देव जो सच्चा, पूरे मनसा हमारी । वाणी निकसी राज्य "तुम्हारा, होवेगा इकवारी ॥ सु० ५ ॥ अंधेकी खोली आंख सुरतमें, पूजे N सब नर नारी । कहां लग गुण वरणूं मैं तेरा, तूं ईश्वर जयकारी || सु० ६ ॥ उगनीसै " संवत्सर त्रेपन, मगशिर मास मझारी । शुक्ल दुज जिनचंद सुरीश्वर, खरतर गच्छ आचारी ॥ सु० ७ ॥ कुशल सूरिके निज संतानी, क्षेमकीर्त्ति मनुहारी । प्रतिबोध्या जिन क्षत्रि पांचसै। जान सहित अणगारी ॥ सु०८ ॥ क्षेमधाड़ शाखा जब प्रगटी, जगमें आनंदकारी । धर्मशील साधू गुण पूरे, कुशल निधान उदारी || सु० ९ ॥ या पूजन करतां सुख आनंद, अन धन लक्ष्मी सारी । कहत राम ऋद्धिसार गुरूकी, जय जय शब्द उचारी ॥ सु० १० ॥ 1 ॥ इति पूजा विभाग | * यह पूजा उपाध्याय रामलालजीगणी ने सम्वत् १९५३ मार्गशीर्ष शुक्ला २ को बनाई है।
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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