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________________ DudhatukadilaniakuntinuintikaneKLEELAM MATALE E जैन-रनसार कुशल गुरु, परचा प्रगट दिखावे रे ॥ सुं ४ ॥ बोथर गूजरमल्ल श्रावककी, दादा कुशल तिरावे । सुक्खसूरि गुरु समय सुंदरकी, जहाज अलोप दिखावे रे ॥ सुं० ५॥ बारेसे इग्यारे दत्तसूरि, अजमेर अनसन ठावे । उपज्या । | सौधरमा देवलोके, सीमंधर फरमावे रे ॥ सुं० ६ ॥ इक अवतारी कारज सारी, मुक्ति नगरमें जावे । कुशल सूरि देराउर नगरे, भुवनपती सुर । । थावे रे ॥ सुं७ ॥ फागुन वदि अम्मावस सीधा, पूनम दरस दिखाये ।। मणिधारी दिल्लीमें पूज्यां, संकट सुपने नावे रे ॥ सुं० ८ ॥ रथी उठी नहीं देख बादशाह, वांही चरण पधरावे । वस्त्र अतर पूजा सदगुरुकी, ऋद्धिसार मन भावे रे ॥ सुं० ९॥ ॥ श्लोक ॥ अखिलहीरशुभैर्नवचीरकैः, प्रवरप्रावरणैः खलु गंधतैः। सकल मङ्गल वाञ्छित दायको, कुशलसूरिगुरोश्चरणौ यजे ॥ १० ॥ ॐ ह्रीं परम पुरुषाय परम गुरुदेवाय भगवते जिन शासनोद्दीपकाय चरण कमलेन्यो। वस्त्रं सौगन्धितं निर्वपामि स्वाहा । ध्वज पूजा ॥ दोहा॥ ध्वज पूजा गुरुराजकी, लहके पवन प्रचार । तीनलोकके शिखर पर, पहुंचे सो नर नार ॥१॥ (जिन गुण गावत सुर सुन्दरी रे,) ध्वज पूजन कर हरष भरी रे ॥ ध्व० ॥ सज सोले शिणगार सहेल्यां, श्री सद्गुरुके द्वार खरी रे । अपछर रूप सुतन सुत लीनी, ठम ठम पग झणकार करी रे ॥ ध्व० २॥ गावत मंगल देत प्रदक्षिणा, धन धन आनंद आज घरी रे । निर्धनको लखमी बकसावत, पुत्र बिना जाके पुत्र करी रे ॥ ध्व० ३ ॥ जो जो परतिख परचा देखा, सुणो भविक दिल बीच धरी HI -KILLLLLImlilalumammar * ध्वजा पर गुरु महाराज से वासक्षेप अवश्य करानी चाहिये । और गुरुओंको भी भेट देनी चाहिये।
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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