SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 481
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पूजा - विभाग अक्षत पूजा ॥ दोहा ॥ अक्षत पूजा गुरु तणी, करो महाशय रंग । क्षति न होवे अंगमें, जीते रणमें जंग ॥१॥ ( अवधू सो जोगी गुरु मेरा ) रतन अमोलक पायो, सुगुरु सम रतन अमोलक पायो । गुरु संकट सब ही मिटायो ॥ सु० ॥ विक्रमपुर नगरी लोकनको, हैजा रोग सतायो । बहुत उपाय किया शांतिकका, जरा फरक नहीं आयो || सु० २ ॥ जोगी जंगम ब्रह्म सन्यासी, देवी देव मनायो । फरक नहीं किनहीने कीना, हाहाकार मचायो ॥ सु० ३ ॥ रतन चिंतामणि सरिखो साहिब, विक्रमपुर में आयो । जैन संघका कष्ट दूर कर, जय जयकार वरतायो ॥ सु० ४ ॥ महिमा सुन माहेश्वर ब्राह्मण, सब ही शीश नमायो । जीवित दान करो महाराजा, गुरु तब यूं फरमायो ॥ सु० ५ ॥ जो तुम समकित व्रतको धारो, अवही कर दूं उपायो । तहत वचन कर रोग मिटायो, आनंद हर्प वधायो ॥ सु० ६ ॥ जो कोई श्रावक व्रत नहिं धारयो, पुत्री पुत्र चढ़ायो । साधु पांचसै दीक्षित कीना, साधवियां समुदायो ॥ सु० ७ ॥ मंत्रकला गुरु अतिशय धारी, ऐसो धर्म दिपायो । ऋद्धिसार पर किरपा कीनी, साचो इलम बतलायो | सु० ८ ॥ 35 ॥ श्लोक ॥ सरलतण्डुलकैरतिनिर्मलैः, प्रवरमौक्तिकपुंज वदुज्वलैः । सकलमङ्गल वाञ्छितदायकौ, कुशलसूरिगुरोश्ररणौ यजे ॥ ९ ॥ ॐ ह्रीं परमपुरुपाय परम गुरुदेवाय भगवते जिन शासनोद्दीपकाय चरणकमलेभ्यो अक्षतं निर्वपामि स्वाहा | नैवेद्य ४५७ पूजा ॥ दोहा ॥ नैवेद्य पूजा सातमी, करो भविक चित चाव | गुरुगुण अगणित कुण गिणे, गुरुभव तारण नाव ॥१॥ Anantay
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy