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________________ งได้งได้งได้ Eritalilailamlailendantetatilwistianiloited. nlmalatalaram atidailetit นดไว้ในใดนใจงใจจดใจได้คนในห้ได้ในทันใดนัดดาใจได้ของคนในปัจจได้งได้ใจงใจไรให้ได้ ในใจไดพใดใดใดได้งใจไว้ได้นางคงใดใจไม่ได้ u alAYLIYE ४१८ जैन-रत्नसार हर्षद ॥ प्र. २ ॥ तहां विमल पयसापूर्ण विभृत्, कमल मधुकर सेव ।। वचन चातक विरह सूचक, करे दादुर टेव ॥ तरु श्रेणि मंडित कुसुम । संचित, फल निचय भूएव । वैडूर्य मणिरिव अवनि राजे, इन्द्र गोप मणेव ॥ प्र० ३ ॥ श्रीकार जंवूक आम्र श्रीफल दाडिमादिक युक्त । अंजीर वंजीर नासपाती, सेववी जहां उक्त । नारंग करणा नूत नौजा भेद भाव अनुक्त ॥ मधु माधवी वरवेल शोभे, सरस द्राक्षा भुक्त ॥ प्र. ४॥ सुर रमण कानन बीच चंचिद, रयन खंभ अनूप । मणि रतन मंडित सुरंग झूलन, शोभ सुन्दर भूप ॥ तिहां मनुज सुरपति सचि मनोहर, सज सिंगार सरूप । जिनचन्द्र भक्ति अखय झूलन, गीत गान निरूप ॥ प्र० ५ ॥ ॥ श्लोक ॥ महा कारीणामति कटु विपाकं विनशयन, सुपक्वं श्रीकारं सुरभि फल भावैः विकसितं । नवीनं सद्शौच्यं परम सकलं मंगल मिदं, जिनां जन्मा वस्था मतुल फल मांगल्य विदधे ॥६॥ ॐ हीं परमात्मने ज्ञानॐ त्रय सहिताय परोपकारक रसिकाय सकल जिनवरेन्द्राय जन्म कल्याणकेभ्यः फलं यजामहे स्वाहा। अर्घ पूजा ॥ श्लोक ॥ अक्षय पद निविषं जैनचन्द्रं यजंते, निधि उदयव्याप्तं जन्म कल्याण भावं । प्रति दिवसमनन्तं पूर्णमानन्द भूतं, प्रविश अचल सौख्यं ज्ञान वृद्धि करोति ॥१॥ ॐ ह्रीं परमात्मने ज्ञानत्रय सहिताय परोपकारैक रसिकाय सकल जिनवरेन्द्राय जन्म कल्याणकेभ्यः अधं यजामहे स्वाहा। चारित्र कल्याणक पूजा जल पूजा ॥ दोहा ॥ गुण सागर चारित्रने, प्रणमो शुद्ध स्वभाव । जिनचन्द्र अक्षय आदरें, त्यागें पर गुण भाव ॥१॥ -laalamlaimhla l alaladisial.lamind - ปได้ แปะไว้ได้ในนให้ได้ไหมครัพในใจให้ดดได้ใจได้ ไป5 โตได้ใ bialistude :
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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