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________________ Sastante festostaaten पूजा - विभाग नैवेद्य पूजा ॥ दोहा ॥ सरस सुगंध माधुर्यता, नैवेद्य अनेक विधान । श्री जिन आगल ढोकतां, पामें परम निधान ||१|| ( बीजे भव वर० > ४१७ श्री जिनवर पदकज सुखदायक, भवजल तारण भिन्न । मोक्ष रूप कारज करवाने, आतम कर्त्ता अभिन्न रे । भविका जन्म कल्याणक सेवो, अविचल सुखनोकंद रे ॥ भ० २ || आर्यादि संयोगी कारण, प्रभु कारण निर्वित्ते । इतरेतर संयोगी कारण, कर्ता कारण युक्ते रे ॥ भ० ३ ॥ पर पुद्गल सहाय तजीनें भास्यो अन्यावाघ, श्री जिनचन्द्र अखयपद कारण, आतम शक्ति अवाध ॥ रे भ० ४ ॥ 1 33 ॥ श्लोक ॥ अपारे संसारे जगदचिर भावं त्वनुभवं, त्रिभावैर्वैराग्यं सकल जगद -- विरहितम् । सुबोधैः सज्ज्ञानैः प्रमित सहितं भोज्य सरसं, जिना जन्मा वस्थां मधुर तर भोज्यं च विदधे ॥५॥ ॐ ह्रीं परमात्मने ज्ञानत्रय सहिताय परोपकारैक रसिकाय सकल जिनवरेन्द्राय जन्म कल्याणकेभ्यः नैवेद्यं यजामहेस्वाहा । फल पूजा ॥ दोहा ॥ सरस मधुर फल कर धरी, पूजे जे जिनराज । सादि अनंत भागें करी, पामें भविजन पाज ॥१॥ (पंग हिंडोला ) चालो सखी देखन जाइयें, प्रभु कुं झुलावे हो जिन कूं, भविजन देखन जाइये ॥ प्र० ॥ आयो मनोहर काल प्रावृट्, सकल व आनंद | जहां असित जलधर गगन गर्जित, दमन दमक मनिंद ॥ सित मुक्ति इव बक पंक्ति विचरे, मेघ धारा कंद । ऐसो समय जब देखिके नृत्य करे Sostenta toota! In total wita tonta Ya Ya to to to Tritatutto on at Yo Yoston's To Lo
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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