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________________ ... wwuruwar wer overwearnerrmusivanmararunaam marwareneurmernmummer EXSXEXEMARATEEKERSAHARAPEETH A RMATHAKH | ३४८ जैन-रत्नसार चतुरधिकतीस अतिशय अमल बारगुण वचन पणतीस गुणमणिनिधानं ॥ हां रे अइयो १५ ॥ सुख करण जिन चरण पद्मसेवित सदा, अमर सुर असुर नर हृदयहारी । एह जिनवर तणी आण पूरण सदा, दाम जिम जगतजन शिरसिधारी ॥ हां रे अइयो १६ ॥ जिनप पद दरस, पारस । फरसते हुवे । प्रगट निज रूप, परिणति विभासं । तजिय बहिरात्म, गिरि सारता भवि लहे, अनुपमं आत्मकांचन प्रकाशं ॥ हारे अइयो १७ ॥ हुवई जिनराज पद, जाप रवि किरणते, तुरत बहु दुरित भव तिमिर नाशं । घनचिदानन्द वरकंदघन भवि लहे, तीर्थंकर चरण कमलाविलासं॥ हां रे अइयो १८ ॥ वर विबुध मणि लही काच लघु सकलको, ग्रहण करवा कवण कर | पसारे । तिम लही जिन चरण शरण शुभ योगसे, अपर सुरसरण कुण | हृदय धारे ॥१९॥ प्रभु तणे पंच कल्याण केरे दिने,प्रगट तिहुँ लोकमें हुयो उजेरो । भविक देवपाल श्रेणिक प्रमुख जिन नमी, बांधियो गोत्र जिनराज केरो ॥२०॥ जेह त्रिण काल नित नमें जिन हरपसू, तेह भवजल तरे जनम त्रीजे । अधिक भव यदि करे तदपि निश्चय करे, सप्त वलि अष्ट भव करीय सीझे ॥२१॥ ॥ काव्य॥ णमो णंतविण्णाण, सदसणाणं सयाणंदिया सेस जंतूगणाणं ॥ भवांभोज वित्थेयणे वारणाणं, णमो बोहियाणं वराणं जिणाणं ॥२२॥ ॐ ह्रीं। श्री अर्हद्भ्यो नमः । द्वितीय श्री सिद्धपद पूजा . ॥ दोहा॥ तनु त्रिभागके घटनतें, घन अवगाहन जास । विमल नाण दंसण कियो, लोकालोक प्रकाश ॥१॥ अविनाशी अमृत अचल, पदवासी अविकार । अगम अगोचर अजर अज, नमो सिद्ध जयकार ॥२॥ ARASHTRAMAYANAKINilaikaloilminessmanenmililialisaniaksharn i ng
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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