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________________ I nts that allahabharatattal katakshatra takshashi t alu ३४७ Mrrrrr i पूजा-विभाग ॥ उलालो ॥ मनभाव विनया वश्यकामल, शील किरिया जाणिये । तप विविध उत्तम पात्र, वेया वच्च समाधि वखाणिये। हित कर अपूरव नाण संग्रह, धरो मन सुजगीश ए। श्रुत भक्ति पुनि तीरथ प्रभावन, एह थानक वीश ए ॥७॥ ॥ ढाल॥ Moledkihinkillestraliabiliolini-kolelicolalbaliksikandeediakhloklekhalialistialishakilitaliabililobiglaish - एह थानक वीश जग जयकारा, जपतां लहिये जिनपद सारा ।। करम निकंदे विसवा वीशे, भाख्यां जगतारक जगदीशे ॥६॥ . ॥ उलालो ॥ जगदीश प्रथम, जिणंद जगगुरु, चरम जिनवरजी मुदा । भव तीसरे पद सकल सेवी, लही जिनपति संपदा ॥ बावीश जिनवर, सकल सुखकर, इंद्र जसु गुणगाइये । इग दोय त्रिण, सह पद जपीने, तीर्थपति पद पाइये ॥९॥ ॥दोहा॥ अरिहंतादिक पद सदा, भजिये तप करि शुद्ध । अति निर्मल शुभ योगता, करिके तसु गुण लुद्ध ॥१०॥ विमल पीठ त्रिक तदुपरे, ठविये जिनवर वीश । पूजन उपगरण मेलि करी, अरचीजे- सुजगीश ॥११॥ एक एक ए पद तणो, द्रव्य पूज परकार । पंच अष्टविध जाणिये, सत्तर इगविस सार ॥१२॥ अष्ट जातिना कलश करि, विमल जले भरपूर । पूजो भवियण सहु मुदा, होय सकल दुख दूर ॥१३॥ सोहे सहु परमेष्ठिमें, जिनवरपद अभिराम । वेद निक्षेप सुमरिये, वधते शुभ परिणाम ॥१४॥ ॥ राग देशाख ॥ (पूर्वमुखसावनं,) सकल जगनायकं परमपद दायकं, लायकं जिनपदं विमलभानं । a lisakaliEXAMINIKKKaleli.halibdib A NEEYAKAISAudiktatathe
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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