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________________ जैन-रत्नसार poorn / IN तृतीय वस्त्रयुगल पूजा ॥ दोहा ॥ वसनयुगल उज्वल विमल, आरोपे जिन अंग । लाभ ज्ञान दर्शन लहे, पूजा तृतीय प्रसंग ॥१॥ ॥ राग गोडी ॥ कमल कोमलघने, चंदने चर्चिते, सुगंध गंधे अधिवासिया ए । कनकमंडित हिये लालपल्लवशुचि, बसनयुग कंत अतिवासिया ए ॥२॥ जिनप उत्तम अंगे, सुविधिशको यथा, करिय पहिरावणी ढोइये ए । पाप लूहण अंगे, लुहणुं देवने, चस्त्र युगपूंज मल धोइये ए ॥३॥ ॥ रागवैराडी ॥ ३३४ """INING IS " ************ देव दुष्य जुग पूजा बन्यो है जगत गुरु, देव दुष्य हर अब इतनो मागं रे । तूंहिज सब ही हित तंहिज मुगति दाता, तिण नाम प्रभु चरणे लागूं रे ॥ दे० ४ ॥ कहे साधु तीजी पूजा केवल दंसण नाण, देव दुष्य मिंश देहुँ उत्तम वागूं रे | श्रावक अंजलि पुट सुगुण अमृत पीतां, सविराडे दुख संशय धुरम भागूं रे ॥ दे० ५ ॥ चतुर्थ वासक्षेप पूजा राग गोडी दोहा ॥ पूज चतुर्थी इण परे, सुमति वधारे वास । कुमति कुगति दूरे हरे, दहे मोह दल पास ॥१॥ ॥ रागसारंग ॥ ॥ हांहो रे देवा ॥ कुसुम ए ॥ हांहो रे देवा ॥ वास हांहो रे देवा बावन चंदन घसि कुंकुमा चूरण विधि विरचे वासु ए चूरण चंदन मृगमदा, कंकोल तणो अधिवासु दशोदिशि वासते, पूजे जिन अंग उवंग ए ॥ हांहो रे देवा || लाछि भुवन अधिवासिया, अनुगामिकी सरम अभंगू ए ॥२॥
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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