SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ •ww.dive Akalikhabartibidietrier-take-Y Elder-tarai-Echodikhakakakak 3. A -% ใete-fie ได้เปิดใจ%%% ของ Get 3 สัจ ด้าน ไม่ต้อง จัง จนได้ไAle tie-Heeleder २३० जैन-रत्नसार ....................... . . . सहु छार सम, भाव सहु मुखत्यार ॥७॥ जिन प्रतिमा जिनसारखी, भगवन् वचन प्रमाण । भावधरी प्रभु पूजता, लहिये सुख निर्वाण ॥७॥ शिव सुख से विमुखजिके, मिथ्या दृष्टी जीव । जिन प्रतिमा उत्थापकर, बांधे भवनी नींव ॥७२॥ धन्य दिवस जे ऊग में, मुझ आवे शुभ भाव.। मनवंछित सुख जब मिले, प्रगटे निज गुण दाव ॥७३|| चिन्तामणि सुरतरु समो, ए तीरथ सुखकार । दिन प्रति गुण को समर के, पामं भवजल। पार ॥७॥ (दाल) सेठेज साधु अनन्ता सीधा, ए तीरथ नी अद्भुत महिमा, धारो चित्त मझार रे। पंच प्रमाद विषय सुख छंडी, भेटो गिरि सुखकार रे ए तीरथ० ॥७५॥ मनुषा जन्म * पायके जे भवि, भेटे नहि गिरि एह रे। ते नर गरभा वासे कहिये, पशु सम गिणती तेह रे ए तीरथ० ॥७६॥ जो तीरथ नी महिमा सुण के, उत्थापे निज बुद्धि रे । ते नर काल अनन्तो भमसी, दुर्लभ पामें सिद्ध रे ए तीरथ० ॥७७॥ इम जाणी मन भावधरी ने, भवि मिल आवे धाय रे । छहरी संयुत गिरि कु सेवे, प्रातः उठ मन भाय रे ए तीरथ० ॥७८॥ इह भव पर भव मांहे कीधा, जे नर पाप अधोररे । ते इण गिरि के फरसण सेती, दूर होय सहु चौर रे ए तीरथ० ॥७९॥ रोग सोग सहु नामें नासे, तूटे करम कठोर रे । दुष्ट देव देवी कामण सहु, भागे तीरथ जोर रे ए तीरथ० ॥८०॥ आलोयणा लेई प्रभु साखे, पाप मेल सहु धोय रे । क्षण * में निज गुण उज्वल पामें, रजक दृष्टान्त तु जोय रे ए तीरथ० ॥१॥ समक्तिधारी जे सुर वरनी, थापना रही इहां जोय रे । धर्म बंधव जाणी वसु द्रव्ये, पूजा करे सहु कोय रे ए तीरथ० ॥८२॥ देव सहाये सहु संघ मांहे, आनन्द मंगल होय रे। ईत उपद्रव भय नहिं व्यापे, दुख दरिद्र सहु खोय रे ए तीरथ० ॥८३॥ तीरथ यात्रा कर तीरथनी, भगति करो * मन शुद्ध रे। तीर्थकर पिण तीर्थ नमीने, दे उपदेश सुबुद्धि रे ए तीरथ० ॥८४|| निज निज शक्ति प्रमाणे जे भवि, सेल क्षेत्र निज बित्त मानव लगत्र मन्त्रमन्त्री चन्द्र ar. s ekxx. kariLalbu l karniosanilianitrilitarian
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy