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________________ Akhtatashatak-hdkakistiatatatatistikahakatatistialashaindisanta kalolockadashalisakesistashatatealthcateekarakanthatestant PRARArrammmmmmmmmmmmmarriomamiwwwmaniranamawonwww. Duratiretrikakirasokhtakatrkari-kate-totrest-iphotakatrkubaratekarotikakaitishtAtakaritakikatthatarkitsarkatarenariestikskitarakshatkatokilakdiliakkakki-ki-kokinaashakakopicialisaharana विधि-विभाग तीर्थोद्धारक धन्य यों, सुजन सुगुण भण्डार । हुए तथा होंगे सही, अजरामर अविकार ॥ ४१ ॥ तीर्थेश्वर संयोगते, तीथेश्वर पद योग । त्रिभुवन में तिहुंकाल में, पावें भवि सुख भोग ॥ ४२ ॥ जिन मन्दिर प्रतिमा पुनित, शत्रुजय शुभ भाव । करें करावें धन्य वे, पावें परम प्रभाव ॥ ४३ ॥ उत्तर गुण से हीन भी, साधु वेश अधिकार । तीर्थराज में प्रणमते, प्रकटे लाभ अपार ॥ ४४ ॥ शत्रुजय को भेटते, पापी होत अपाप । काती पूनम पर्व में, भाव प्रभाव अमाप ॥ ४५ ॥ जयतु सनातन सिद्ध गिरि ! जयतु विजयदातार । जयतु पाप सन्ताप हर, जयतु सार-संमार ॥ ४६ ॥ जयतु अधम उद्धार कर, जय जय पालन हार । जय अविकारी भाव धर,जय जय गुण भण्डार ॥ ४७ ॥ जय सुखसागर जय विभो ! जय भगवन् गिरिराज। । जय योगीश्वर गम्यपद, जय तीरथ सिरताज ॥ ४८ ॥ जय सुरगणनायक हरि-पूज्य रुचिर रुचि धार । जय अध्यात्म विकाश हित, पुष्ट हेतु विस्तार ॥ १९ ॥ जय अनन्तं अति शान्त गुण, सिद्ध सिद्धि सुखदाम । | जय "कवीन्द्र" कीर्तित ! सदा, सविनय करूं प्रणाम ॥ ५० ॥ चैत्यवन्दन के बाद “जकिंचि"--"णमोत्थुण"--"जावंति चेइयाई"जावंत केवि साहू"-"नमोऽर्हत् कहकर निम्न लिखित स्तवन कहे (लघु शत्रुञ्जय रास) दोहा-आदि जिनन्द दिनन्द सम, ज्योतिरूप जगतेय । आतम गुण परकाश कर, भवियण कुं सुखदेय ॥१॥ वाग्देवी प्रणमी करी, सद्गुरु शीश नमाय । सिद्धक्षेत्र का गुण कहू, सुभताने सुभत्याय ॥२॥ सुभता वचने चालतां, सदा सुरंभी देह । सुरपति नरपति सहुन में, या में शिव सुख तेह ॥३॥ सुमता जिन चेतन भणी, समझावे चित आय । प्रथम बात एही कहुं, सुणो भविक चितलाय ॥४॥ ( ढाल मारूजी की ) सुमता कहें चेतन भणी, साहिबजी, छोड़ो मिथ्या जाल हो । इक चित्ते एगिरि सेविये सा०, जो निज गुणनी चाह हो ॥ इक० ५॥ काल Barakhandrasheadliardadtakestralaatkalin MaladaslitatialishalisaekssockholesthapkindialoKisleakpdesakakirtial testiclestialaalakalbelistiblinikishalilahkanticlesladishaktishali l abalibahadik ketkatialistiblikasTHE-BK 29
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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