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________________ २१० Kebacchi kasa kare Yetoylethal tolette hothoot ch जैन - रत्नसार ******* " जय कषाय वनान्तक, पावक ! जय कलंक निवारक, पावक ॥१८॥ जय सुखोदधिवर्द्धक चन्द्रमा ! जय जनाम्बुज बोधन अर्यमा ! जय विभो भगवत्व गुणाधिक ! जय भवाम्बुधि तारक नाविक ॥ १९ ॥ जय सदा हरि पूज्य गिरीश्वर ! जय महा महिमा अजरामर ! जय कवीन्द्र सुगीत यशोनिधे ! जय महाजय पुण्य पयोनिधे ॥ २० ॥ इस प्रकार चैत्यवन्दन कहकर "जंकिंचि ०" कहे बाद "णमोत्थुणं० " कहे जावतिचेइयाई • “ जावंत केविसाहू.” “नमोऽर्हत० " कहकर बीस गाथाका श्री सिद्धाचल तीर्थराज का स्तवन पढ़े । श्री आबूब्जी स्तवन गाथा २० यात्रीडा भाई आबूजीनी यात्रा करज्यो । यात्रा भणी उमहेज्यो तुम्हे नर भव लाहोलीज्योरे, यात्रीडा भाई आबूजीनी यात्रा करज्यो । पंचतीरथ मांहेछाजे आबू मारूडैदेश विराजेरे, यात्रीडा भाई आवूजीनी यात्रा करज्यो स्वरगथी वादै लागो उंचो अंबरिये जाइ लागो रे, यात्रीडा भाई आबूजीनी यात्रा करज्यो ॥ १॥ एतो देवानो वास कहावै निरखन्ता त्रिपति नथावेरे, यात्रीडा भाई आबूजीनी यात्रा करज्यो। एतोडूंगरियाने राजा एहनी है बारह पाजारे, यात्रीडा भाई आबूजीनी यात्रा करज्यो || २ || छह ऋतु वास बणायो एतो चंपला अंवला छायोरे, यात्रीडा भाई आबूजीनी यात्रा करज्यो । सखर झरणा झाझा जिहां तिहाघनवेल्याआझारे, यात्रीडा भाई आबूजीनी यात्रा करज्यो || ३ || भार अढारे वणराई एतो इहां हिज निजरे आइरे, यात्रीडा भाई आबूजीनी यात्रा करज्यो । दहदिशि परिमल आवै फूलडानो रंगसुहावैरे, यात्रीडा भाई आबूजीनी यात्रा करज्यो ||४|| ऊपर भूमि विशाला देवल दीहा रलियालारे, यात्रीडा भाई आबूजीनी यात्रा करज्यो । विमलमन्त्री बरदाई चक्केसरिदेवी सहाई रे, यात्रीडा भाई आबू - जीनी यात्रा करज्यो ||५|| पोरवाडवंश दीपतो जिणदलपति साही जीतोरे, * आबूजी में मूलनायक भगवान् ऋषभदेवजी की प्रतिमा है अतः यह स्तवन यहां पर लिखा गया है।
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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