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________________ A ka d ethlataka.bliktilgolkatibahbbi.-radatatak-t68M.SAREE २०६ .. waamawwwanmaamirmwameramanianmawww ............ विधि-विभाग जय शमोन्तम भूमि विशेषित ! जय वरिष्ठ विशिष्ठतया स्थित !। जय महाप्रभ तीर्थ अनुत्तर ! जय गिरीश्वर शुद्धि महत्तर ! ॥५॥ शिवरमा मुख दर्शन के लिए, अचलता गुण शिक्षण के लिए। सशिव निश्चल सिद्धगिरीश्वर, शरण लूं मरणादि अगोचर ॥६॥ अमर के घर की नित नौकरी, सुरलता सुरधेनु करें खरी। अमर सेव्य गिरीश्वर तें कहो, कित रहे. समता उन अहो ॥७॥ विकट मोहमहा भट को हरा, कर निज प्रभुता गुणसे भरा । मनु जयध्वज मूर्त किया खड़ा,गुणी गणेन गिरीश्वर को बड़ा ॥८॥ न जिसके बहिरात्म अभव्य भी, पुनित दर्शन पा सकते कभी । नयन दर्शन दर्शन ही नहीं, हृदय दर्शन दर्शन है सही ॥९॥ सुख सुदुःख समुत्थित भोग में, भवन या वन योग वियोग में । अमम हो विमलाचल जोरहें, सहज ने विमलाचल हो रहे ॥१०॥ . सुतर हो भव सागर सर्वथा, विलय जन्म जरा मरण व्यथा । बल विकाश अनन्त अनन्त हो, स्मरण में यदि तीर्थ जयन्त हो॥११॥ सुजन जो विमलाचल में चलें, विषय चोर नहीं उनको छलें । कुपथमें खलके बल होत हैं, सुपथमें खल निर्बल होत हैं ॥१२॥ गिरि अनेक यहां पर हैं खड़े, गगन में अति उन्नत हो अड़े। मिल रही उनमें कुछ भी भला, पर कहो विमलाचल की कला ॥१३॥ अविरलोद्यत पुण्य प्रकाशके, सुहित कारक सिद्ध गिरीशके । निकटमें यदि दोष ननाश हो, रवि व घूक निदर्शन खास हो ॥१४॥ सु विमलाचलको तजे, स्वहित अन्य तथैवच जो भनें । सुरमणी तज पत्थर वे गहें, प्रथम के गुण थानक में रहें ॥१५॥ कुमति जो विमलाचल दर्शन तें सही, कुटिल कर्म कभी रहते नहीं। किमु मदोडत हस्ति समूह भी, न मृगनाथ विलोक भगें कभी ॥१६॥ सफल जन्म घड़ी दिन है वही, अतुल भक्ति नदी जिसमें वही । नवह जन्म घड़ी दिन भी नहीं, सु विमलाचल भक्ति जहां नहीं ॥१७॥ जय सदागम सिद्ध पदोदय ! जय सुसेवक जन्तु कृताभय ! Amakoottostarthakathakantakarate.lokikalaakikikatti ladakikikaRKaEA4trikileanIEARESTitbilalestindiealthballiantalihinbiaatkaalana-TREYada n .gr..
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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