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________________ ७४४ htttttttt LLLL जैन - रत्नसार २०४ I चन्दन, बिम्ब स्थापन करे । चावलों से श्री तीर्थाधिराजको वधावे । केशर, से पर्वत की पूजा करे । तब श्री संघ मिलकर पर्वत के चारों तरफ तीन प्रदक्षिणा देवे और पूजा शुरू करे । एकाग्रचित्त से अष्ट मङ्गलीक की स्थापना करके मूल प्रतिमा को पञ्चामृत से स्नान करावे । दश णमोक्कार गिनकर दश फूल या फूलमालाएं, दश फल, श्रीफल, अनार, नारंगी फल चढ़ावे । पट्टेपर दश साथिये करे । दश दीपक करे । दश जाति के मिष्टान्न, नैवेद्य चढ़ावे । कपूरकी आरती करे। पीछे सिद्ध गिरि गुणमित चैत्यवन्दन करके २१ खमासमण' देवे । 'श्री सिद्धक्षेत्र पुण्डरीक गणधराय नमः' इस पद को दश बार नमस्कार करे । फिर 'श्री शत्रुञ्जय पुण्डरीक आराधनार्थं करेमि काउसग्गं' अणत्थ० ' कहकर दश लोगस्स का उद्यापन की सामग्री १५ चंदुए, १५ पिछवाई, १५ बन्दरवाल, १५ चौपड़, १५ रुमाल, १५ ठवणी, १५ स्थापनाजी, १५ आसन, १५ पूजनी, १५ पूजनीकी दण्डी, १५ दवात, १५ कलम, १५ कागज, १५ पुड़िया, १५ पुस्तक, १५ पूठे, १५ पूठियां, १५ ओघे, १५ पात्रे, १५ मोरपीछी, १५ चन्दन मुटु, १५ धूपदाने, १५ कलश, १५ रकेवी, १५ कटोरी, १५ दीपक ( लालटेन सहित ), १५ अंगणे, १५ केशरकी पुड़िया, १५ वॅवर । चैत्री पूनम के पांचों १ श्री सिद्धाचलजी का चित्रपट, १ पट्टा । सिद्धाचल पर्वतकी पूजा के लिये पुण्डरीक गणधर की तथा ऋषभदेव भगवान् की प्रतिमा | १ घण्टा, १ घड़ियाल, १७० फूलमाला, १७० नारियल, १७० सुपारी, १७० मिठाई, १७० फल, १७० कपूर की पुड़िया आरती के लिये, १७० जल के कलश, १७० केशर की कटोरी, १७० दीपक, १७० अंगलहणे, १७० कलश पञ्चामृत, १७० फूल गुलाब के । दोपहर में श्री सिद्धाचलजी की पूजा करने की सामग्री १ ध्वजा, २ जल, ३ चन्दन, ४ पुष्प, ५ धूप, ६ दीपक, ७ अक्षत, ८ नैवेद्य, ६ फल, १० गुलाब जल, ११ मंगलूहका जोड़ा हरएक पूजा में यथाशक्ति नगदी अवश्य चढ़ावे । * पश्चामृत दूध, दही, घृत, केशर, मिश्री । + हरएक बार वन्दनपूर्वक । १- पृष्ठ ४ । प्र पूजन की सामग्री র
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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