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________________ PRArorketorterstothapkaractiktaksesakskootakalatkretokadak-decordotkaise karokar विधि-विभाग २०३ lotatasank shatrakakiroatiala lexitasanaxialistindiaticlexit सर्वज्ञ वक्ता वरतामसमंकलीना, प्रोणीतु विश्रुतयशा श्रुतदेवतानः ॥१२॥ कृप्तस्तुति निविडभक्ति जड़पृक्तैः, गुफैगिरामितिगिरामधि देवता सा।। वालीनुकंपइतिरोपयतु प्रसाद, उमेरादृशं मपि जिनप्रभसूरिवर्या ॥१३॥ - चैत्री पूनम पर्व श्री आदिनाथ भगवान् के प्रथम गणधर श्री पुण्डरीक स्वामी इसी चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन मोक्ष गये और अनन्त भव्यात्माओं की में यहां आत्मसिद्धी होने से इस परम पवित्र तीर्थ की यात्रा करने से अपूर्व लाभ होता है और अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है। कहा है :त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि, तेषां यद्यात्रया फलम् । पुण्डरीक गिरेर्यात्रा, तदेकापि तनोत्यहो ॥१॥ चैत्रस्य पूर्णिमास्यांतु, यात्रा शत्रुञ्जयाचले । स्वर्गापवर्ग सौख्यानि, कुरुते करगाण्य हो ॥२॥ अर्थात् तीन लोकों के सम्पूर्ण तीर्थों की यात्रा करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह पुण्य श्री पुण्डरीक ( शत्रुञ्जय ) तीर्थाधिराज की एक ' ही यात्रासे होता है और चैत्री पूर्णिमाके दिन जो भव्य शत्रुञ्जय तीर्थ की । यात्रा करते हैं वे स्वर्ग और मोक्ष के अनन्त सुखों को प्राप्त करते हैं । अगर यात्रा करने की सामर्थ्य न हो तो अपने नगर में, मन्दिर अथवा किसी पवित्र स्थान में यथासाध्य श्री शत्रुञ्जय पर्वत की स्थापना करके, पुण्डरीक स्वामी का ध्यान करने से भी भव्यजीव कर्मों का क्षयकर मोक्ष प्राप्त करते हैं अतएव सबको इस दिन सिद्धाचलजी की स्थापना करके विधिपूर्वक सुव्रताचरण करना चाहिये । ___ चैत्री पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल सब प्रभातिक कृत्य करके मन्दिरजी में जावे और पूजा करे । तदनन्तर चावलों की ढेरी बनाकर सिद्धाचलजी की स्थापना करे और पुण्डरीक गणधर अथवा श्री ऋपभदेव स्वामी का a mahakinehtatiohotoshindi kotalAsstate-AAT AAshtail- thisuate thing । इसके बाद गौतम स्वामी का अप्टक पढ़े जो आगे दिया गया है। "इन्द्रभूति वाभूति पुत्र ।
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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