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________________ ~~~~~,~;" विधि-विभाग १७१ माला फेरे । सिद्धपदके आठ गुण हैं अतएव ८ नमस्कार खमासमण सहित करे और अणत्य० कहे आठ लोगस्स का काउसग्ग करे | शेष विधि पूर्वोक्त करे । तृतीय दिवस विधि पूर्वोक्त विधि से प्रभातिक कृत्य करे। आचार्य पद का पीला वर्ण है। अतएव चने का आयंबिल करें। 'ॐ ह्रीं णमो आयरियाणं' की २० माला फेरे । आचार्य पढ़के गुणों का खमासमण सहित छत्तीस नमस्कार करे | इस प्रकार करके अणत्य० पूर्वक ३६ लोगस्स का काउसग्ग करे पीछे पार कर एक लोगस्स० कह पूर्वोक्त शेष विधि सम्पूर्ण करे | चतुर्थ दिवस विधि ह्रीं णमो उवज्झायाणं' की २० माला फेरे । मूंग का आयंविल करे | उपाध्याय पद के गुणों को खमासमण सहित २५ नमस्कार करे । इस रीति से पच्चीस नमस्कार कर, अणत्य० सहित पच्चीस लोगस्स, का काउसग्ग पार प्रगट लोगस्स • कहें । पूर्वोक्त शेष सम्पूर्ण विधि प्रथम दिन की तरह करे | पञ्चम दिवस विधि ‘ॐ ह्री णमो लोए सव्वसाहूणं इस पद की २० माला फेरे । साधु पढ़ का रंग काला होने से उड़द का आयंबिल करे । साधु पद के सत्ताइस गुणों को खमासमण पूर्वक नमस्कार करे । सत्ताइस लोगस्स का काउसग्ग करे । शेष सम्पूर्ण विधि पूर्ववत् करे इन पञ्च परमेष्ठी के सब गुणों का जोड़ १०८ होता है अतएव माला में भी दाने १०८ होते हैं । षष्टम दिवस विधि 'ॐ ह्रीं णमो दंसण' की २० माला फेरे । दर्शन पढ़ का वर्ण सफेद होने से चावल का आयंबिल करें । सम्यक्त्व के ६० गुणों की खमान्नमण पूर्वक नमस्कार करे । १९४५
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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