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________________ b anninthaila १७० ilitatiడుదనందనవనందదదదదదదది కుడవసాక जैन-रत्नसार wwwwwwwwwwwwwwwwwwwriwomewwwrarusuawmraniwaranaamaaranamannmanmaina సమయమున తపోమ హానవవనతనంలోనే .. प्रभात समयमें राई प्रतिक्रमण करके, वस्त्रों की पडिलेहण करे फिर मन्दिरजी में अथवा जहां सिद्ध चक्रजीकी स्थापना की हो वहां आकर पांच णमुत्थुणं० से वन्दना करे । पीछे नव मन्दिरों के दर्शन कर नव चैत्यवन्दन करे, अगर नव मन्दिरों का योग न हो तो एक ही मंन्दिर में * एक बार चैत्यवन्दन करना चाहिये । हमेशा दिनमें तीन बार पूजा करे, । प्रातःकाल वासक्षेप से पूजा करे। दोपहर के समय स्नात्र पूजा कर अष्ट प्रकारी पूजा करे और शाम को धूप, दीप से पूजा करे। दोपहर के समय गुरु के पास आकर राई आलोवे । अन्मुडिओमि के पाठ सहित आयंबिल का पच्चक्खाण लेवे । प्रथम अरिहन्त पद का वर्ण श्वेत (सफेद ) है अतएव चावल और गरम पानी से आयंबिल करे। पीछे अरिहन्त के बारह गुणों को विचार कर नमस्कार करे। प्रत्येक गुणोंके पूर्व में इच्छामि०१ से खमासमण देना चाहिये । इस प्रकार नमस्कार करके अणत्थ०२ कहकर १२ लोगस्स का काउसग्ग कर प्रगट लोगस्स. कहे । पीछे स्वस्थान पर जाकर चैत्यवन्दन करे । पच्चक्खाण पार आयंबिल करे । पीछे चैत्यवन्दन कर पाणहार पच्चक्खाण करे। 'ॐ ह्रीं णमो अरिहंताणं' इस पद की २० माला फेरे । श्रीपाल चरित्र पढ़े अथवा सुने । पौन पहर दिन बाकी रहने से तीसरी बार णमुत्थुणं से देव वन्दन करे । फिर सामायिक ग्रहण कर दिन रहते प्रतिकमण करे तथा मन्दिरजी में धूप पूजा कर आरती करे । सोने के पूर्व इरियावही०३ पडिक्कम कर चैत्यवन्दन करे । राई संथारा गाथा पढ़े अथवा सुने । जहां तक निद्रा न आवे वहां तक नवपद के गुणों का स्मरण करे । मन, वचन, काया से ब्रह्मचर्य का पालन करे । द्वितीय दिवस विधि इसी तरह दूसरे दिन भी प्रभातिक क्रिया करे । सिद्ध पद का लाल वर्ण है अतएव गेहूंका आयंबिल करे 'ॐ ह्री णमो सिद्धार्ण' इस पदकी २० తమతమ పావనముననుండattack १-पृष्ठ २। २-पृष्ठ ४१३-पृष्ठ ३१४-पृष्ठ ५८| लमत्रान्वयनमन्त्र बन्न नपत्रपत्र नबनननननननन्वन्त्रत्रयमपचनननननगगन
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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