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________________ विधि-विभाग १६७ साता पूछे पीछे सर्वोपकरण पडिलेहण करे टट्टी पेशाबके स्थान आदिकी पडिलेहण करे, और जिस दिन भोजन करे उस दिन पौन प्रहर पडिलेहण के बखत थाली कटोरादिक सर्व उपभोग के पात्रादिक पडिलेहण करे | उपवास के दिन पडिलेहण नहीं करे। तीसरे पहर की विधि तथा पक्खी प्रतिक्रमण में असिज्झाई काउसग्ग न करे तो आगामी पक्खी तक सर्व सिद्धान्त की असिज्झाई हो । इरियावही ० का पाठ भी पढ़ना नहीं भूले । इसलिये असिज्झाई में भी असिज्झाई का काउसग्ग करना चाहिये युग प्रधान श्रीजिनचन्द्र सूरिजी महाराज ने महोपाध्याय श्रीसागरचन्द्र गणि से पूछा तब ऐसा ही जबाब मिला योगारम्भ की यह विधि है | यहां चउमासी के योगारम्भ में वर्ष और महीने की शुद्धि का मुहर्त नहीं देखना चाहिये दिन शुद्ध देखना । मृदुध्रुवचरक्षिप्रे, बारे भौमं शनि बिना । आघाटनं तपोनंद्या, लोचनादि शुभं शुभम् ॥१॥ उपधान* तप विवरण गाथा । श्री मुहपत्ति पण्णासं, अट्ठारस आसणम्मि पडिलेह | दंडे पत्ते सोलस, कप्पे पणवीस गोयमा ॥१॥ पणवीस चोलपट्टे, गुरु कंबल तहय चेवसंथारे । कहासणे अट्ठारस, जपे दंडेअ पंचेव ॥२॥ इति प्रतिलेखणा । पण उववासा याम, अट्ठयं कुह अट्ठमं अंते । णमोक्कार उवहाणं, इत्तियमित्तं इरिया || १ || सक्कत्ययंमि तहएगं, अहमं अंबिलाणबत्तीसं । अरिहंत चेइयत्थए, चउत्थ माया मतियगं च ॥२॥ चउवीसत्थए मट्ठ मेगं, पणवीस हुँति आयामा । - णाणत्थयंमि चउत्थं, आयामा पंच उवहाणं ||३|| चउवीसं उववासा, एगासी अंबिलाण सव्वंगं । पंचोत्तरं च पोसह, सय वहाणे सुजाणे ||१|| * इस तपस्याका प्रचार विशेष गुजरात देशमें है ।
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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