SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ getsARKathshotththiteki Kksablededadaesakolassteadioskoseddkaktikdaddedossadias जैन-रत्नसार admistantrastutimes.indiationakailaisyaktikartatist मनप्रस्थानत्रयप्रनयन्त्रमूलप्रवन्प्रनयन्त्रप्रयाग्रप्रययप्रययप्रयत्न प्रयाप्रश्रमप्र प्रजनन प्रधानमन्त्रप्रन्प्रनप्रजनननननननननन पखवासा तप की विधि प्रथम शुभ दिन शुभ घड़ी गुरु के पास जाकर शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक निरन्तर १५ उपवास करे । यदि शक्ति न हो तो पहले शुक्ल पक्ष की एकम और शुक्ल पक्ष की दूज का उपवास करे । इस तरह अनुक्रम से १५ सुदि पक्ष में पखवासा तप की तपस्या पूर्ण करे। श्री मुनि सुव्रत स्वामी का भाव गर्भित स्तवन सुने । और 'श्री मुनि सुत्रत खामी सर्वज्ञाय नमः ।" इस पद की बीस माला फेरे । तदनन्तर तपग्रहण विधि तथा देव वन्दन इत्यादि की विधि पूर्वोक्त रीति अनुसार सम्पूर्ण तपस्या विधि पूर्ण करे क्योंकि विधि पूर्वक करने से ही उत्तम फल होता है। दश पच्चक्खाण की तप विधि - शास्त्रकारों ने जिस तरह अन्यान्य तपस्याओं का फल समझाया है। जो श्रावक 'दस पञ्चक्खाण' का तप करना चाहें वे पहिले दिन णमुक्कारसी दूसरे दिन पोरिसी, तीसरे दिन साढ़ पोरिसी, चौथे दिन पुरिमड्ड, पांचवें दिन एकासणा छठे दिन णिवि, सातवें दिन एगलठाणा, आठवें दिन दत्ति, नवमें दिन आयंबिल, दशवें दिन उपवास। इस तरह दशों पच्चक्खाण दश दिन में करे, साथ ही स्तवन भी सुने । समाप्त होने पर यथाशक्ति उजमणा करे। इस तपस्या करने वाले को उत्तम गति प्राप्त होती है । महान् ऐश्वर्यशाली होता है । अतएव धर्मानुरागी श्रावक और श्राविकाओं के लिये यह तप करना भी अत्यन्त लाभदायक है। बीस स्थानक तप विधि शुभ दिन शुभ मुहूर्त के समय नन्दी स्थापन करके गुरु के पास विधि पूर्वक बीस स्थानक तपकी ओली उच्चरे। एक ओली दो माससे छह मास पर्यन्त पूरी करे।यदि छह मास की अवधि (समय) में एक ओली न पूरी कर सके तो उसको फिर से शुरू करनी होगी, क्योंकि वह गिनती में नहीं आती। एक ओली के बीस पद होते हैं उन बीसों पदों की बीस दिन में एक एक आराधना करनी होती है। अगर न हो सके तो Lalitin-liETERMERE-liniciahall a llantosaneleiotatistirlienation
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy