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________________ १२० = = = NULL womadurinaruwaunuwarnwww.ammerowine తెలుగు పదుల వlithalli నటుడిపడినటthalatha పడిన యువకుడు పురుడు Mahasabhalu जैन-रत्नसार । कहे । पश्चात् एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् वंदित्तु सूत्र पढुं ? इच्छं, कह, तीन णमोक्कार गुण वंदित्तु सूत्र पढ़कर सुअदेवया० की थुई बोल नीचे बैठे । तदनन्तर दाहिना घुटना खड़ा करके एक णमोक्कार करेमि भंते०, इच्छामि पडिक्कमिडं जो मे पक्खिओ०' कह वंदित्तु सूत्र कहे । बाद खड़े होकर करेमि भंते०, इच्छामि ठामि० तस्स उत्तरी * अणत्थः' कह बारह लोगस्स या ४८ णमोक्कार का कायोत्सर्ग करे।। । उसे पारकर प्रगट लोगस्स०२ पढ़कर, मुंहपत्ति को पडिलेह कर दो वन्दना। देवे । पश्चात् इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पक्खीसमाप्त खामणेणं अब्भुडिओमि अभितर पक्खि खामेउं ? इच्छं, खामेमि पक्खिों एग पक्खस्स पणरसहं दिवसाणं पणरसहं राईणं जं किंचि अपत्ति कहे। बाद । खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पक्खी खामणा खामं? कह खमासमण दे दाहिना हाथ चरवले या आसन पर रख सिर झुका एक णमोक्कार पढ़े । इस रीति से चार दफा करे । पीछे देवसिक प्रतिक्रमण में वंदित्तु के बाद की जो विधि शेष है । वही कुल विधि समझ लेना । 'ज्ञानादि गुणयुतानां०३, 'यस्याः क्षेत्रं समाश्रित्यः' थुई कहें। स्तवन के स्थान में अजितशान्ति कहे । सज्झाय के स्थान में उवसग्गहरं० और संसारदावानल की चारों थुइयां कहे । और बड़ी शान्ति पढ़े। चउमासी प्रतिक्रमण की विधि चउमासी प्रतिक्रमण में कुल विधि पक्खी प्रतिक्रमण की तरह ही समझनी चाहिये । जहां जहां 'पक्खी शब्द आया हो, वहां वहां 'चउमासी' शब्द कहना। चउमासी प्रतिक्रमण में चउण्हं मासाणं, अठण्हं पक्खाणं, विसोत्तरसय राई दियाणं जं किंचि० कहना । और तप की जगह छठेणं कहे और दो उपवास, चार आयंबिल, छ णिन्वि, आठ एकासणे, सोलह बिआसणे, चार हजार सज्झाय कहे । और बीस लोगस्स या ८० IntesticlestiatiotislikskretitellicleidiMEANEle-datioth समग्रणयन्त्रन नयन-प्रश्रमप्र प्रधानमनत्रयपत्र-जनप्रथाश्रमणप्रय o lidkistiatianeliateAREAMINiplinaatkastastrataktents, त्न त्रय प्रजननयननननन्द्रालगन्प्रत्ययनमा Shakileakistatistakindialilianslakatialadehatertaishalincaletalalalalese १-पृष्ठ ३१२-पृष्ठ४।३-पृष्ठ २२१४-पृष्ठ १७॥
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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