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________________ attachakthడదడండడముచుకుందునుండునననననననననవంతుడు १०७ विधि-विभाग का प्रमार्जन कर ? इच्छं। कह मुंहपत्तिका पडिलेहण करे । फिर खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंगपडिलेहण संदिसाहूं? इच्छं ।' खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अंगपडिलेहण करूं ? इच्छं ।' ऐसा कह * आसन धोती आदि पडिलेहे और पौषधशाला की प्रमार्जना कर कूड़ा करकट विधि पूर्वक एकान्तमें गेर दे और एक खमासमण दे 'इरियावहियं.' का पाठ कहे । तदनन्तर एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पसायकरी पडिलेहण पडिलेहावोजी ? इच्छ' ऐसा कह 'शुद्ध स्वरूप धारें। बोलते हुए स्थापनाजी की पडिलेहण कर उच्च स्थान पर विराजमान करे । पीछे एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण उपधि मुंहपत्ति पडिलेहूं ? इच्छं कह खमासमण देकर मुंहपत्ति का पडिलेहण कर । बाद खमासमण दे 'इच्छाकारेण सज्झाय संदिसाहूं ? इच्छं । फिर खमासमण दे ‘इच्छा| कारेण सज्झाय करूं ? इच्छं।' कहकर एक णमोक्कार गुण उपदेशमालार * की सज्झाय कहे । पीछे णमोक्कार गिनकर पञ्चक्खाण करे। यदि आहार किया हो तो दो वन्दना देकर पच्चक्खाण करे । अन्त में एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण उपधि थंडिला पडिलेहण संदिसाहू ? इच्छं। खमासमण दे 'इच्छाकारण. उपधि थंडिला पडिलेहण करूं ? इच्छं।' खमासमण दे 'इच्छाकारेण० वेसणूं संदिसाहू ? इच्छं ।' फिर खमासमण दे 'इच्छाकारेण * वेसणूं ठाउं ? इच्छं कहकर बैठे और वस्त्र, कम्बल, चरवला आदि का पडिलेहण । उपवास करने वाला वस्त्रादि की पडिलेहण कर कटिसूत्र और धोती फिर पडिलेहे । पीछे उच्चार प्रश्रवण के २४ थंडिला पडिलेहे । चौवीस थंडिला पडिलेहण पाठ १ आगाढ़े आसण्णे उच्चारे पासवणे अणहियासे ।' २ आगाढ़े मझे उच्चारे पासवणे अणहियासे । ३ आगाढ़े दुरे उच्चारे पासवणे अणहियासे | ___४ आगाढ़े आसपणे पासवणे अणहियासे । १-पृष्ठ २१२--पृष्ठ ७५। ३-पृष्ठ ।। ४-स्त्रियां अपने २ वस्त्रों की पहिलेहणा करें। En-tilamlentertainirurtalukatrkurtantatwlrt-mariatortantralatkarstratakotrian totatistatement-tats.estoaktarlannelartmkrelandekatashamtarbattarakootarkastastroloratislalala-telialekholimkatrinthiaticlinicline จในไกลโคเลไปไกลไหม, ครียด คดโคนได้, ไตใจใกโยงได้ไงไมงคล โดยโอน โดยได้พได้เปิดใจไมโครได้อยโองไตใจไทยนไหนไพะเยอะไรกไทยโดย ไกไหนไกลไกเตะไคไกโดในไตไพโดยใยไยในไดนาไพรไดไฟในไดไหนใดใด มโน, ไอโตไว ใน แคมเปญโดย กด "ในใจไทย 6 In 14 - 1.1 1. ไทย, Lels
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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