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________________ అ thettalitaritakitatakడదుందుడుకుందురు దుండగుడుకుంటుండురుగుండillalalalalad్మ! १०२ जैन-रत्नसार wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww.nawanwar mahwa LatestastratantanA RAatmakarshatantr x जत्रनयन्तनमनननननननननननन प्रस्त्र प्रणप्रत्र प्रमाणप्रत्र प्रमाण पोसह का पञ्चक्खाण करेमि भंते ! पोसहं, आहार पोसहं देसओ सव्वओ सरीर सक्कार पोसहं । सव्वओ बंभचेर पोसहं ? सव्वओ अव्वावार पोसहं । जावदिवसं अहोरत्तंवा पज्जुवासामी, दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं, ण करेमि ण कारवेमि, तस्स भंते पडिक्कमामि जिंदामि गरिहामि अप्पाणं बोसिरामि।। फिर खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक लेवा मुंहपत्ति पडिलेहूं ? इच्छं' कह एक खमासमण दे मुंहपत्ति पडिलेहें । तब एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक संदिसाहूं ? इच्छं कहे । फिर खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक ठाउं ? इच्छं' कह खमासमण दे खड़े होकर तीन णमोक्कार गिने । फिर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पसायकरि सामायिक दंडक उच्चरावोजी' बोलकर करेमिभंते०१ का तीन बार पाठ सुने या बोले तदनन्तर एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् बेस' संदिसाहूं ? इच्छ', फिर खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् बेसणूं ठाउं ?, में कहे । पीछे एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय संदिसाहूं ? इच्छ' तथा एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय करूं ? इच्छ' कहकर खमासमण दे ग्हड़े ही खड़े आठ णमोक्कार गिने । अगर शीतकाल में वस्त्र की आवश्यकता पड़े तो उसके लिये एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पांगरणं संदिसाहूं ? इच्छ' .. कह फिर एक खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन पांगरणूं। । पडिग्गहूं ? इच्छं' ऐसा कह वस्त्र ग्रहण करे पीछे एक खमासमण दे । 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बहुवेलं संदिसाहूं ! इच्छ' और एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! बहुवेलं करूं ? इच्छं। इस प्रकार पौषध लेकर पूर्वोक्त रीत्यानुसार अगर पहले न किया हो तो राई प्रतिक्रमण पूर्व विधि अनुसार करे । विशेष इतना है कि चार थुई के K atekartedREATERatiniateket- E-KALAisthaneselilionfathetirlinkunthitedinlientirlichut.kenathali- langdionleadlinf-liniemalanieladieantar १ पुष्ठ३।२-पृष्ठ ८७। गिटन मनमनमाज प्रजनननननननननननन प्रणप्रत्र
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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