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________________ ४६ जैनराजतरंगिणी तथा अपनी जन्मभूमि मे नवीन विहार बनवाया (३.१९३-१९४)। उसने मण्डल मे मठ अग्रहार मसजिद विहार एवं गृह पक्तियों से तीस-बीस प्रतिष्ठाएँ की (१:१९५) । आयुक्त अहमद ने मसजिद, हुजरा एवं खानकाह बनवाया (१:१८४) फिर्य डामर ने जैन नगर मे सुन्दर सत्र वाला मसजिद, हुजरा सहित खानकाह बनवाया (३:१९७) । बोधा खातून ने मृगवाट में दग्ध मठ का नवीनीकरण किया (३:१९८)। रिगक और नुत्थक ने क्रमराज्य में दो मठ निर्माण कराया (३.१९०)। मोमरा खातून ने जैन नगर में नवनि मठ बनवाया (३:१९९)। जयराज, राजपुरी वंशीय ने सिकन्दरपुर के निकट नवीन खानकाह निर्माण कराया (३:२००)। फेर ठक्कुर ने विजयेश्वर नदी तट पर मठ निर्माण कराया (३:२०२)। हिन्दू तथा बौद्धों द्वारा भी एक निर्माण का पता चलता है। सय्य भाण्डपति ने विजयेश्वर में विहार बनवाया, जो धर्म संघादि उपहार से बौद्ध मार्ग सदश शोभित था (२:२०३)। लक्ष्ममेर आदि श्रेष्ठवणिकों ने भीम स्वामी गणेश का शैलमय नवीन प्रसाद निर्माण कराया (३.२०४) । छिछली भूमि पर राजा ने सरोवर खुदवाकर, उसमें कमल, शृगाट (सिंघाड़ा) भोजनोपयोगी पादप लगवाये । जातियाँ: श्रीवर ने जातियों के विषय में बहुत लिखा है। मुसलमान हो जाने पर भी हिन्दू जाति-पात छोड़ न सके थे। अपने पूर्व जाति एवं उपजाति का पुछिल्ला साथ लगाये रखे। जातियों मे खश (४:११३,२१२,४९४, ६५०), चक (१.१:४०,४:५८५), आभीर (१:१:२५), किरात (१:५:५८,३:२९०), दरद (१:३:९५), किन्नर (१:५:१०,१:६:७), राजपूत (४:४६५,५२७), सैयिद (३:१६०), तुरुष्क तथा काश्मीरी थे । काश्मीरियों में अनेक उपजातियाँ, ठक्कुर (१:१:४४,३:४६३,४:१०४), डामर (१:१.९४,१३३), प्रतिहार (१:१:९२,१५१), राजानक (१:१:८८), मार्गेश (१:१:९२,१५२), तेन्त्री (१:१:९४,१३३), लवण्य-लुन (१:३:६९,७०), डोम्ब (४:१६९,४७४), चाण्डाल (१:१:३८,४.९९), नायक (४:४१५,४४२), रावत्र (२:२१२,४:३३९), आयुक्त (२:१७३,१८१,३:३७०,३८०,३९४,४००) के अतिरिक्त सिद्ध थे (३:५०९) जातियों का उल्लेख श्रीवर ने किया है। उनका विस्तार के साथ यथास्थान वर्णन मिलेगा। हिन्दुओं में केवल एक ही जाति ब्राह्मणो का उल्लेख मिलता है। उनमे राजानक तथा भट्ट ब्राह्मण वर्गों का बहुत उल्लेख है। धर्म: श्रीवर के समय काश्मीर मुसलिम बहुल प्रदेश था। मुसलिम धर्म मे सुन्नी एवं शीया दोनों सम्प्रदाय थे। सूफियों की भी संख्या थी। चक जाति शीया थी । शेष सम्प्रदाय सुन्नी एवं उनके उप सम्प्रदाय थे। मुसलिम सूफियों के अतिरिक्त ऋषियों, दरवेशों एवं पीरों की भो परम्परा थी। हिन्दू-जाति प्रायः शैव मतावलम्बी थी। उनमे तन्त्र तथा वैष्णव मत का भी कुछ प्रचार था। हिन्दुओं के मुसलमान हो जाने पर भी, पुरातन धार्मिक संस्कार जनता में व्याप्त थे। श्रीवर ने चतुष्पाद धर्म का बहुत उल्लेख किया है। हिन्दुओं में सनातन धर्म पर आस्था बनी थी। हिन्दुओं में मूर्तिपूजा प्रचलित थी। सिकन्दर बुत शिकन के प्रतिमा भंग के पश्चात भी जैनुल आबदीन के समय प्रतिमाएं स्थापित की गयीं । गृहों में गृह देवताओं की पूजा होती थी (१:३:१७)। . बौद्ध-बौद्ध धर्म भारत में लोप हो गया था। फिर भी भारत के सीमान्त प्रदेशों में किसी न किसी रूप में प्रचलित था। सुदूर पूर्व में बंगला देश के पूर्वीय खण्ड, भारत के उत्तर, भूटान, सिक्किम, नेपाल,
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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