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________________ भूमिका (४.६३), (४:५५६), जुहिलामठ, (४.६१), चक्कवाड (४:४६४), चटिकासार (४.६१३), छुन्दानक (४:३७१), जम्भ वाट (४ ५६६) तारवल (१:७:२), दीनार कोट (२:१४८), दुर्गापुर (१:३:२१,) नन्दपुर (४:११८), मंगलादेवी (२:१४८), मंगलनाड (४:५१२), मानस नगर (१:३:४८), सिकन्दर पुरी (२:४२), सिद्धपुरी (१:५:४३), सुप्रसनमन (१:१:११४), सुमनो वाट (२:१२१,४:२६२), का उल्लेख किया है। श्रीवर ने सीमान्त तथा भारतवर्ष के देश-प्रदेश के कुछ प्राचीन तथा कुछ अपने समय के प्रचलित नाम दिये है। उनका विस्तृत विवरण नही देता। उनका यथास्थान वर्णन किया गया है। प्राचीन देशों में अभिसार (१:५:२२), उत्तरा पथ (४:३३६), किन्नर (१:६.७), गान्धार (३:२४५), गुर्जर (१:६:२५), गौड़ (१:२५; १:६:१०; ३:२४५), जालन्धर (४:४०६), दर्वाभिसार (१५:२२), पचनद (१:६:६), पांचाल (३:४२), भुट्ट (३:२२), भद्र (२:६८), माण्डव (१:६:१०), वाराणसी (१:५:४०), विष्णु पर्वत (१:५:९८), सिन्धु देश (१:७:३४,४७,२०५,४:१०९), सुराष्ट्र (१:६:१७), स्यालकोट (३:३४०) का उल्लेख किया है। विदेशों के भी कुछ नाम दिये है-इराक (१:७:५९), खुरासान (१:४:३२,१:६:२५), गिलान (१:६:२६), ताजिक (१:६:६), दरद (१:३:९५), मक्का (१:४:३२), मिश्र (१:६:३१)।। ___ अप्रचलित नामों में-गोपालपुर (१:६:१४), घोष देश (१:४:५०), चिभ देश (१:१.१७,२:१४८), तुरुष्क देश (४:४२७), शाहिभंग (४:२१२) नाम दिया है । जिनका पता अन्य स्रोतो से खोजना पड़ता है। नदियो मे 'ज्यलमं'-झेलम = वितस्ता (२:१५१), महासरित (१:४:२९,३:२७६,७७,१:५:५७), विशोका (१:३:८,१३,१५,३९), तिलप्रस्था (१:५:३५) तथा सिन्धु का नाम देता है। यहाँ प्रथम बार झेलम का उसके प्रचलित वर्तमान नाम से लिखा है। ____ काश्मीर मण्डल के स्थानों का सामान्य ज्ञान श्रीवर को था। उसने जितना बड़ा ग्रन्थ लिखा है, उसके अनुपात से भौगोलिक परिचय बहुत कम दिया है। उसने जिन स्थानों का नाम दिया है, उसमे कुछ को छोड़कर, शेष का पता लग जाता है। उसका भौगोलिक वर्णन ठीक है। सीमान्त तथा बाह्य देशों का न तो उसने भौगोलिक वर्णन किया है और न उनका परिचय देता है। वे सम्भवतः उस समय इतने प्रचलित नही थे कि उनके परिचय देने की आवश्यकता होती । निर्माण : श्रीवर के काल में निर्माण बहुत हुए थे। उनमे प्रमुख-जैन तिलक (१:३:३४), हेलापुर (१:३:४३), जैन सर (१:६:१), नवीन राजनिवास-जयापीड़पुर (१:३:४४), कुल्या निर्माण (१:५:१२८), जैन नगर में राजधानी निर्माण लौ०:४५१५ = सन् १४३९ ई० (१:५:४), ग्राम निर्माण (१:५:१३), सरोवर निर्माण (१.५:३०), कुलोद्धरण नाग पर राजगृह निर्माण (१:६:३), बारहमूला मे नवीन आवास निर्माण (१:७:४२), दिद्दामठ नदी तटपर राजधानी निर्माण (३:१७१), गुलरवातून द्वारा मदरसा निर्माण (३:१७५), श्रीनगर मे खानकाह निर्माण (३:१७७), अनेक्षा उद्यान में गृह निर्माण (३:१८२), सुय्यपुर मे राजधानी (३:१८१) तथा विजयेश्वर मे नदी तट पर राजगृह का नवीनीकरण किया गया (३:१७९)। कुलोद्धरण नागपर राजवास का जीर्णोद्धार (३:१७८), अग्निदग्ध सुय्यपुर का नवनिर्माण (१:१९५), (१:७:४३), लहर राजवास का जीर्णोद्धार (१:५:१३,१४) किया गया था, आयुक्त अहमद के पुत्र नौराज आयुक्त ने नवीन मठ के साथ नगर मे क्षिप्तिका तथा नवीन शेलसेतु निर्माण कराया (३:१८८) । ताजभट्ट ने कराल देश मे जैनपुरी के मध्य मठ निर्माण कराया (३:१९१)। राजा ने वलाढ्य मठ के अन्दर खानकाह (३:१९३)
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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