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________________ २ : १७५-१७७] श्रीवरकृता ३०१ मुमूर्षों पितरि ज्ञात्वा महतो दर्शनागतान् । तन्निर्गमनिरोधाय द्वारधान्यां भटान् व्यधात् ।। १७५ ॥ १७५. पिता के मरणासन्न होने पर, बहत लोगो को दर्शन हेतु आया जानकर, उनका निर्गम रोकने के लिये, द्वार पर भटो' (सैनिकों) को नियुक्त कर दिया । स्वालयस्थोऽनुजो राज्ञो भयहर्षाप्तसभ्रमः । करानिव रविस्तीक्ष्णांश्चरान् संचारयन्नभूत् ॥ १७६ ।। १७६ अपने घर पर स्थित, राजा का अनुज (बहराम खॉन) भय एवं हर्ष से भ्रान्त (संभ्रमयुक्त) होकर, सूर्य के किरणों के समान तीक्ष्णो' का संचार कर दिया। तत्कालं राजलक्ष्मीः सा पितृव्यभ्रातृपुत्रयोः । द्वयोरासीत् समारूढा चित्ते संशयधीरिव ॥ १७७ ॥ १७७ उस समय चित्त में संशय बुद्धि सदृश राज्यलक्ष्मी चाचा (बहराम खाँन) एवं भतीजा (हसन) मध्य स्थित रही। द्रोण सिंह के वल्लभी सम्बत् १८३ के फलक ( ई० के करहद फलक शक ८८० मे मिलता है (इ० आई०११ - १७); धारसेन द्वितीय के वल्लभी आई० ७ : २६, ३९, तथा इ० आई . ४ : २७८, सम्बत् २५२ के फलक (आई० ए० १५ . १८७), २८५)। तथा मातृका फलक गुप्तसम्वत् २५२ मे उल्लेख पाद-टिप्पणी । मिलता है ( ई० आई० : ११ . ८३ )। जिले के १७६. (१) तीक्ष्ण : कौटिल्य ने, गुप्तचरों या अधिकारी तथा उसके सबडिवीजन के प्रशासक को चरों का वर्गीकरण किया है, उनमें तीक्ष्ण को भी रखा भी आयुक्त या आयुक्तक कहते थे (हर्षचरित )। है। तीक्ष्ण वे गुप्तचर होते थे, जो जीवन से इतने आयुक्त का उल्लेख कौटिल्य के अर्थशास्त्र मे भी निराश होते हैं कि धन के लिये हाथी से भी लड किया गया है। वहाँ भी उसका अर्थ लघु अधिकारी जाते थे। शाहमीर ने भी कोटा रानी की हत्या के रूप में वर्णन किया गया है। समुद्रगुप्त प्रयाग का भार ताक्ष्णा का दिया था ( जान० : ३०५ )। के स्तम्भ लेख मे आयुक्त पुरुष का उल्लेख किया तीक्ष्ण उन गुप्तचरों के लिये भी प्रयोग किया गया है गया है। जो वध कार्य करते थे ( जोन० : ५१७) । द्रष्टव्य ___आजकल आयुक्त शब्द कमिश्नर के लिये प्रयोग टिप्पणी जोन० : ३०५ तथा ५१७ । ( कौटिल्य : किया जाता है। अर्थ : १ : १२)। बहराम खां ने तीक्ष्णों की सेवा युक्त एवं युक्तक शब्द समानार्थक माने सुलतान हैदरशाह को मारने के लिये ली थी। गये हैं। यक्त एक कर्मचारी था। उसका क्या श्रीवर के वर्णन से यही निष्कर्ष निकलता है। कार्य था, ठीक पता नही चलता किन्तु वह परिषद कल्हण ने भी तीक्ष्ण शब्द का प्रयोग बधिकों के ( मन्त्रिमण्डल ) से सीधा आदेश ग्रहण करता था। लिये किया है। तीक्ष्ण गुप्तचर के साथ ही बड़े अशोक के गिरनार शिलालेख में इसका उल्लेख साहसी होते थे और चुपचाप हत्या कर देते थे मिलता है। कौटिल्य ने भी इसका उल्लेख किया (रा० : ४ : ३२३ )। है (२ : ५, ९)। युक्तक शब्द काम्बे गोविन्द पाद-टिप्पणी: चतुर्थ शक सम्वत् ८५२, के फलक तथा कृष्ण तृतीय १७७. "राज" पाठ-बम्बई।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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