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________________ २८४ जैनराजतरंगिणी |२:११०-११२ श्रुततन्मरणो राजा दूतैरत्यन्तदुःखितः । तद्देशाच्छवमानीय जननीसंनिधौ न्यधात् ॥ ११ ॥ ११०. दूतों से उसका मरण' सुनकर, राजा अत्यन्त दु:खी हुआ और उस देश से शव लाकर, माता के सन्निधि में रख दिया। ज्येष्ठोऽपि शौर्यनिलयोऽपि बलान्वितोऽपि प्राप्तोऽपि जन्मभुवमाप्तधनप्रपञ्चः । नैवाप राज्यमुचितं स कृतप्रयत्नो भाग्यविना न हि भवन्ति समीहितार्थाः ।। १११ ।। १११. ज्येष्ठ शौर्य एवं सेना युक्त होकर भी तथा जन्मभूमि को प्राप्त करके भी, धन प्रपंच प्राप्त कर लिया, किन्तु प्रयत्न करने पर भी, वह समुचित रूप से राज्य नहीं प्राप्त कर सका। निश्चय ही, भाग्य के बिना वाञ्छित अर्थ की सिद्धि नहीं होती अथवा पितृशापः स तस्यापि फलितोऽभवत् । यदाप्तोऽपि निजं देशं परदेशे क्षयं गतः ।। ११२ ।। ___११२. अथवा वह पिता का शाप' ही उसके लिये फलित हुआ, जो अपने देश में आने पर भी, परदेश में मरा। पाद-टिप्पणी: (लाश) काश्मीर मे मँगवा कर, मुहल्ला सहियायार मुतसिल नवाकदल मे दफन करवा दी। ११०. (१) मरण : तवक्काते अकबरी मे त उल्लेख है-सुल्तान मृत्यु का समाचार सुन कर म्युनिख में भी यह कथा लिखी गयी है-जैसे बहुत दुःखी हुआ और उसने आदेश दिया कि उसके ही हैदरशाह के पास समाचार पहुँचा कि आदम खाँ शरीर को रणक्षेत्र से लाकर उसके पिता के मकबरे दिवगत हा गया है, उसन ज्यष्ठ भ्राता की लाश के निकट दफन कर दिया जाय (४४७ % ६७४)। - ६७४)। जम्मू में मॅगा कर, सुल्तान जैनुल आबदीन की कब्र के पास गड़वा दिया (पाण्डु० : ७८ ए०)। तवफिरिश्ता लिखता है-सुल्तान के राजा की , क्काते अकबरी :३:४७७ । मृत्यु का समाचार सुना तो उसने भाई का शव काश्मीर मँगवाया और उसे पिता के समीप दफन पाद-टिप्पणी : करवा दिया। १११. उक्त श्लोक का भाव श्लोक : १ : ७ : श्रीवर ने माता के समीप और तवक्काते अकबरी १९८ तुल्य है। तथा फिरिश्ता ने लिखा है कि पिता के समीप दफन पाद-टिप्पणी : कर दिया गया। ११२. (१) शाप : द्रष्टव्य :१:७ : ९५, (२) माता : पीर हसन लिखता है-उसकी ९६ तथा १ : ७ : ११७ ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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