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________________ २७६ जैन राजतरंगिणी स्वशवाजिरार्थं बहुकारुषु दत्तवित्ताः । जानाति को मम कदा मरणं कथं स्यात् ।। ८९ ।। ८९. मुसलमान लोग अपने शवाजिर (क) के लिये बहुत से शिल्पियो को धन देकर, सदैव यत्न करते हैं, यह नही सोचते कि परमेश्वर के अतिरिक्त कौन जानता है, मेरी कहाँ पर और कैसे मृत्यु होगी ? यः कुर्वन्ति मौसुलजनाः यत्नं सदैव नो चिन्तयन्ति परमेश्वरमन्तरेण स्वायुषोऽवधिमवैति यस्यान्तको भवति तं प्रति म्लेच्छेषु स्वदेहनिष्ठं मित्रतयातिवश्यः । शवाजिरकर्म कर्तुं युज्येत दुर्व्यसनमात्रमिदं मतं मे ।। ९० ।। ९०. जो अपने देह में स्थित आयु की अवधि जानता है, और मित्रता के कारण अन्तक जिसके आधीन होता है, उसी के लिये शवाजिर कर्म करना उचित है, ( अन्यथा ) म्लेच्छों का यह दुर्व्यसन मात्र है। यह मेरा मत' है । हरि या हारी पर्वत भी कहते है। हारी का अर्थ काश्मीरी में पक्षी होता है। यहाँ पर आजकल निरंजननाथ संस्कृत पाठशाला है। [ २:८९-९० इस पर्वत के पादमूल मे बहुत कब्रिस्तान आज भी है किन्तु आबादी बढ़ने और भूमि की कमी के कारण वे स्वतः लुप्त हो रहे है । (२) इट्टिका इटिका का पाठभेद यदि इष्टिका मान लिया जाय तो अर्थ होगा कि कब में रखकर ईंटों से ढक दिया । यदि उसका अर्थ शिविका मान लिया जाय तो ताबूत मे ले जाकर उसे कक्ष में रख दिया । बगली कबर होने पर उसके खुले स्थान को शव रखने के पश्चात् घंटों या पत्थरों से बन्द कर देते है। यहाँ अभिप्राय मिट्टी की ईंटो से है । पाद-टिप्पणी : ८९. (१) शवाजिर मजार श्रीवर दाह तथा गाड़ने के सम्बन्ध में अपना स्वतंत्र मत प्रकट करता है । वह गाड़ने की अपेक्षा दाह करना अच्छा मानता है । वह इस श्लोक के पश्चात अपना तर्क उपस्थित करता है। प्रतिष्ठित अथवा पनी मुसल मान अपने जीवन काल में अपने लिये कब्र या मजार बनवाते है । उस पर यथेष्ट व्यय भी करते है किन्तु भाग्य उन्हें वही गहने के लिये लायेगा कहना कठिन है । इसका ज्वलन्त उदाहरण इलाहाबाद का खुसरो बाग है । जहाँ एक भव्य इमारत बड़ी है। परन्तु गढ़नेवाला उसमें गाड़ा नही जा सका। बिना वास्तविक कब्र के वह इमारत आज भी खड़ी है। हिमायूँ का मकबरा मुगलों ने अपने वंश के गाड़ने के लिए बनवाया था ताकि हिमायूँ के कुटुम्बी मरने के पश्चात भी उसके समीप ही गये पड़े रहे। मैं समझता हूँ कि मुगल वंश के सैकड़ों से अधिक व्यक्ति दारा शिकोह सहित यहाँ गड़े है। कितने ही वहाँ न गड़कर हिन्दुस्तान के भिन्न भागों में उपेक्षित मिट्टी के ढेरों के नीचे पड़े है । औरंगजेब अर्ध शताब्दी राज्य करने पर भी दिल्ली से हजारों मील दूर खुलदाबाद में दफन है और खुली कब्र की उपेक्षा तथा भग्नावस्था देख कर सर-सालार जंग ने उसे संगमरमर का बनवा कर उसे रक्षित किया था । परन्तु पाद-टिप्पणी ९०. 'अवैति' 'निष्ठम्' पाठ-बम्बई ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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