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________________ २१८ जैनराजतरंगिणी [१:७:१४४-१४७ यैः समं स्ववयो । तेऽवशिष्टा न केचन । आजीवनं चलत्येषा तद्वियोगविषव्यथा ॥ १४४ ॥ १४४. 'जिन लोगों के साथ अपनी आयु व्यतीत किया, वे कोई नहीं बचे हुए हैं, उनके वियोग की विष व्यथा आजीवन चल रही है देहोटजमिदं जीणं केशवणगणावृतम् । सच्छिद्रं रोचते नाद्य दुर्दिने मन्मनोमुनेः ।। १४५ ॥ १४५. 'देहरूप यह कुटीर, जो कि केशरूप तृणों से आच्छादित है, जीर्ण एवं छिद्रयुक्त हो गयी है । मनरूप मुनि को यह रुचिकर नहीं लग रहा है।' भुजगैरिव दष्टानि राज्याङ्गानि सुतैर्मम । तत्यागोपाय एवैको युक्तो मे नान्यथा सुखम् ।। १४६ ॥ १४६. 'सों के समान मेरे पुत्रों ने राज्यांग को डस लिया है। उनका त्याग ही एक मात्र उचित उपाय है, अन्यथा मुझे सुख नहीं।' इत्यादि चिन्तयन् राजा पारसीभाषया व्यधात् । काव्यं शीकायताख्यं स सर्वगर्हार्थचर्वणम् ।। १४७ ॥ १४७. इस प्रकार सोचते हुए, राजा ने फारसी भाषा में सर्वलोगों के निन्दारूप अर्थ को प्रकट करनेवाला 'शिकायत" नामक काव्य लिखा । पाद-टिप्पणी: समझता और बोलता था ( म्युनिख : पाण्डु० : ७३ १४५. उक्त श्लोक का कई प्रकार से अनुवाद ए०; तवक्काते अकबरी : ४३९ = ६५९ । हो सकता है परन्तु मुझे यही अनुवाद ठीक लगता ___वह विद्वानों का इतना आदर करता था ठीक है। कि किसी पर नाराज होने पर, उसे देश से निर्वासित करने पर भी पुनः बुला लेता था। मुल्ला अहमद पाद-टिप्पणी: निष्काशित कर दिया गया था। वह पखली पहुँचा। वहाँ से चार कविता लिखकर, सुल्तान के १४७. (१) शिकायत : अरबी शब्द है। उपालम्भ या उलहना से यहाँ अर्थ अभिप्रेत है। ' पास भेजा। सुल्तान इतना प्रसन्न हुआ कि उसे पुनः काश्मीर में बुला लिया (हैदर मल्लिक : योगवाशिष्ठ के आधार पर सुल्तान ने शिकायत पाण्डु० : ११७ बी०, ११८ ए०)। शीर्षक ग्रन्थ फारसी में लिखा था। जैनुल आबदीन ने दो ग्रन्थ फारसी में लिखा जैनुल आबदीन केवल विद्वानों का आदर ही था। पहला आतिशबाजी के ऊपर था। उसका नही करता था, वह स्वयं विद्वान था। वह काश्मीरी, नाम नहीं मालूम है। दूसरे ग्रन्थ का शीर्षक हिन्दी, संस्कृत, फारसी तथा तिब्बती भाषा जानता 'शिकायत' था। सुल्तान ने फारसी मे कुछ पद्यों था। वह संस्कृत में गीत भी गाता था। संस्कृत की भी रचना की थी।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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