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________________ भूमिका २३ भाषा मे लिखी गयी दश राजाओं का शाहमीर से जैनुल आबदीन काल तक दश उसके समय दश राजाओं के चरित के साथ संस्कृत में एक और राजतरंगिणी ग्रन्थ था । उसका अनुवाद सुल्तान जैनुल आबदीन ने फारसी में कराया था - 'संस्कृत ग्रन्थ राजतरगिणी को फारसी भाषा द्वारा पढने योग्य कराया ।' सुल्तान हुए हैं। कोनराज ने दश सुल्तानों का वृत्तान्त लिखा है। यदि यह जोनकृत राजतरंगिणी होती तो, रचनाकार अपने गुरु जोनराज का उल्लेख इस प्रसंग में श्रीवर अवश्य करता । जोनराज की राजतरगिणी मे २४ राजाओं एवं सुल्तानों का चरित्र लिखा गया है। सम्भावना यही है कि इस राजतरंगिणी का रचनाकार कोई और व्यक्ति था । मूल ग्रन्थ तथा उसका फारसी अनुवाद अभी प्रकाश मे नही आया है। शुक इस ग्रन्थ का उल्लेख नहीं करता । अध्ययन : श्रीवर ने शास्त्रों एवं विविध विद्याओं का गम्भीर अध्ययन किया था । उसके ग्रन्थ अवलोकन से, संगीत शास्त्र भरत का नाट्य शास्त्र, धर्मशास्त्र, वैशेषिक दर्शन, योग दर्शन, कल्पशास्त्र, मोक्षोपम साहित्य, चार्वाक तथा कला मूलक ग्रन्थों के अध्ययन का आभास मिलता है । धीवर बृहद् कथा, गीत गोविन्द, योग वासिष्ठ आदि पुराण, हाटकेश्वर सहिता का राजतरंगिणी में उल्लेख करता है सुल्तानों को उन्हे पढ़कर सुनाया करता था (३.१ १.५:८० १२:८४, १५:०४, १.५:८६, १:४.१८, ३:५४२, २५७, १:५:८०, १:७३३ २०:५७) इससे प्रकट होता है कि उसने उनका अध्ययन किया था । गीतांगाधिपति : 1 काश्मीर के दशवें सुल्तान हसन शाह के समय श्रीवर गीत, नाटक, आदि का अधिकारी था। उसे 'गीतांगाचिपति' की उपाधि मिली थी। वह स्वयं दिखता है सुल्तान ने गायक वृन्द को मेरे सम्मुख उपस्थित करो - इस प्रकार मुझ गीतागाधिपति को आदेश दिया । वाद्य सहित वहावदीन, आदि वृन्द गायकों को स्थापित कर, नाम ग्रहण पूर्वक, सबको निवेदित किया (३:२४० - २४१ ) श्रीवर राजकवि के साथ ही साथ संगीत, नृत्य, गान, नाटक विभाग का अधिकारी था। वही इन सबका प्रबन्ध करता था । उसी के निदेशन पर, इस राजकीय विभाग का कार्य होता था । वह स्वयं लिखता है - 'उस समय मुझसे गीत गोविन्द के गीतों को सुनकर, राजा में गोविन्द भक्ति से पूर्ण कोई अपूर्व रस उत्पन्न हुआ । उस समय हम दोनों के मंजुल गीतनाद की कुंज में होने वाली प्रतिध्वनि राजगौरव वश वहाँ के किन्नरों द्वारा अनुगीत सदृश प्रतीत हो रही थी ।' (१:५.१०१, १०२) गीत - गोविन्द भक्ति रस मय गीत काव्य है । अनेक स्वर एवं लयों में गाया जाता है। काशी मे पहले गीत गोविन्द गायक सस्वर गाते थे । आजकल आधुनिक संगीत के चक्कर में लोग पुरातन राग एवं शास्त्रीय संगीत भूल गये है। श्रीवर लिखता है - 'जहाँ पर वापीगत हंस शब्द व्याज से मानो समीपस्थ गान करते थे । गायकों के गीत की प्रशंसा करते थे। (१:५:८) जहाँ पर इन्द्र के समान सत्रु को नीचा कर, सुखपूर्वक, गन्धर्व विद्या का आनन्द लेते हुए, सब दिन व्यतीत करता था' (१:५:९) । श्रीवर ने संगीत विद्या का स्थान-स्थान पर तरंगिणी में उल्लेख किया है । उसे संगीत के सब अंगो का पूर्ण ज्ञान था । वह लिखता है - 'राजा के सम्मुख कर्णाट के गायको ने केदार, गौड़, गान्धार, देख, बंगाल, तथा मालल राग गाया । ( १:२४५) धीवर अनेक , रागों का उल्लेख करता है। उससे प्रकट होता है । वह संगीतज्ञ था । संगीत शास्त्र का ज्ञाता मात्र नही
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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