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________________ १ : ७ : ५३-५६ ] श्रीवरकृता लसन्मदो विभुप्राप्त कार्योत्पादित सौहृदः । तत्कालं प्रमयं यातो दाता मेरखुशामदः || ५३ ।। ५३. गर्वीला एवं प्रमुख तथा अपने कार्यों से राजा की मित्रता प्राप्त की थी, वह दाता र खुशाद' उसी समय मर गया । दुर्वातमन्वहं शृण्वन्नार्तां जानन्निजां प्रजाम् । स्वसुतान्योन्यवैरेण चिन्तातप्तो नृपोऽभवत् ।। ५४ ।। ५३. प्रतिदिन दुर्वाता (बुरी खबर ) सुनते तथा अपनी प्रजा को पीड़ित जानते हुये, वह राजा अपने पुत्रों के पारस्परिक बैर से चिन्ता तप्त हो गया । अतीतान् बान्धवान् भृत्यान् सखीन् प्राणसमान् स्मरन् । स्वात्मानमविद् राजा यूथभ्रष्टमिव द्विपम् ।। ५५ ।। ५५. प्राण सदृश पुराने बन्धुओं, भृत्यों एवं मित्रों को स्मरण करते हुए, राजा ने अपने को भ्रष्ठ (समूह से बिछुड़ा) गज तुल्य जाना । राजसू नोहज्यखानस्य अत्रान्तरे अस्वास्थ्यमुदभून्नित्यं ५६ इसी बीच राजा का पुत्र हाजी खांन को नित्य अत्यधिक मद्यपान सेवन से रक्त सम्बन्धी रोग' हो गया । तवक्काते अकबरी मे दर्याव खा का उल्लेख मिलता है - उसने अज्ञात कुल एक आदमी जिसका नाम मुल्ला दरया था उसे दरया खा की उपाधि से विभूषित किया । और उसे सब कारभार सौप दिया और स्वयं सुख और आनन्दपूर्वक रहने लगा (४४१ = ६६०-६३१) । १९९ darकाते के दोनों पाण्डुलिपियों में 'वादरया' तथा लीथो संस्करण तवक्काते एवं फिरिश्ता मे 'मुल्ला दरया' लिखा मिलता है । पाद-टिप्पणी : ५३. (१) मीर खुश अहमद जैनुल आबदीन का दरबारी था । इसके विषय मे विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है । केवल यहीं उल्लेख मिलता है । रक्तजम् । मद्यपानातिसेवनात् ॥ ५६ ॥ पाद-टिप्पणी ५६. (१) रक्त संबन्धी रोग तवक्काते अकबरी मे उल्लेख है—अन्त मे निरन्तर मद्यपान करने के कारण हाजी खा को संग्रहणी की बीमारी हो गयी और प्रशासन मे बडी अस्तव्यस्तता हो गयी (४४४ = ६६९) । फिरिश्ता ने कुछ उलटी बात लिख दिया है । उसका मत है कि हाजी खा को नही बल्कि सुल्तान को संग्रहणी हो गयी थी । सुल्तान हाजी खां के अत्यधिक मद्यपान के कारण नाराज रहता था, सरकारी कामकाज ठप पड़ गया था । कर्नल ब्रिग्गस का मत तवक्काते अकबरी से मिलता है। हाजी खां को संग्रहणी हो गयी थी । कि सुल्तान को । रोजर्स तथा कैम्ब्रिज हिस्ट्री आफ sfusar ने फरिश्ता के मत का अनुकरण किया है ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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