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________________ १:४ : ४७-४९] श्रीवरकृती मेघाडम्बरमम्बरं यदि तदा निर्नष्टशोभा वयं नित्यं तीक्ष्णकरेण तेन दिवसे तत्राप्यहो बाधिताः। स्वामी नः शशभृल्लयोदयहतो दुःखादितीवागता उद्याने नरदेव सेवनपराः पुष्पच्छलात् तारकाः ॥ ४७ ॥ ४७. 'यदि आकाश मेघाडम्बर ग्रस्त होता है. तो हम लोगों ( ताराओं) की शोभा नष्ट हो जाती है और दिन में भी सूर्य के द्वारा बाधित होते हैं। हमलोगों ( ताराओं) का स्वामी चन्द्रमा घटाव-बढ़ाव से नष्टप्राय है। हे राजा! इस दुःख से मानो सेवा में तत्पर तारकायें ही पुष्प छल से उद्यान में आ गयी है। पङ्कातङ्ककलङ्किता जलमया ये भोगिदेहार्तिदा स्त्वद्देशे विलसन्त्युपात्तविषयाः सन्मागविघ्नोधताः । ते याताः स्वयमेव देव विलयं श्रीमत्प्रतापोदया दस्मिन् हर्षमये वसन्तसमये पालेयपूरा यथा ॥ ४८ ।। ४८. 'पंकातंक से कलंकित सर्वशरीर को पीड़ाप्रद, सन्मार्ग से विघ्न हेतु उद्यत, जो जलापुर' देश में आकर, विलसित होते हैं, हे देव ! वे श्रीमान् के प्रतापोदय से उसी प्रकार स्वयं समाप्त हो गये हैं, जैसे इस हर्षमय वसन्त समय में प्रलयपुर।' श्रुत्वेति भूपतिहष्टो हाज्यखानाय सत्वरम् । सौवर्णकर्तरीबन्धमप्रमेयं समापिपत् ।। ४९ ॥ ४९. यह सुनकर प्रसन्न राजा ने तुरन्त हाजीखान को जागीर ( प्रमेय' ) रहित सुवर्ण कर्तरी (छुरिका) प्रदान किया। पाद-टिप्पणी। ४९. (१) प्रमेय : जागीर रहित अथवा ४७. कलकत्ता संस्करण की ३८०वी पंक्ति है। जागीर मुकर्रर नमूद । पाद-टिप्पणी : (२) कर्तरी : पीर हसन लिखता हैपाठ-बम्बई; कलकत्ता संस्करण की ३८८वीं पंक्ति है। बादशाह अपने तमाम बेटों में हाजी खाँ को सबसे ४८. (१) जलापूर : बाढ़। ज्यादा अजीज रखता था। इसके निशान में सुलतान (२) प्रालेयपूर : तुषार किंवा हिमपूर्ण। ने उसे एक जवाहरदार तलवार बख्शने के अलावा यथा-"ईशाचल प्रालेय प्लवनेच्छ्या ' गीतः १. 'प्रालेय मन्सब व जागीरें भी अता की (पृष्ठ : १८५)। शीतम चलेश्वर मीश्वरोऽपि' शिशुपालवध ४ : ६४। तवक्काते अकबरी में उल्लेख है-सुल्तान ने पाद-टिप्पणी: उसे सुनहरा पेटी प्रदान की और वह उससे सर्वदा कलकत्ता संस्करण की ३८२वी पंक्ति है। सन्तुष्ट रहता था ( ४४४-६६८.)।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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