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________________ १३० जैनराजतरंगिणी [१:४:३९-४० भट्टावतारः शाह्रामदेशग्रन्थाब्धिपारगः।। व्यधाज्जैनविलासाख्यं राजोक्तिप्रतिरूपकम् ॥ ३९ ॥ ३९. शाहनामा' नामक देश ग्रन्थ में पारंगत भद्रावतार ने राजा की उक्ति प्रति रूप जैनविलास नामक ग्रन्थ लिखा। वीणातुम्बीरवावाद्याः सर्वास्तुष्टेन भूभुजा । सुवर्णरौप्यरत्नौधैर्घटितास्ताश्चकाशिरे ॥४०॥ ४०. सन्तुष्ट होकर राजा ने वीणा, तुम्बी, रबाव' आदि वाद्यों को सुवर्ण, रौप्य एवं रत्न समहों से बनवाया और वे चमकने लगे। योधभट्ट सुल्तान का दरबारी था। फिरदौसी का था। फिरदौसी ने यह काव्य गजनी को भेंट किया शाहनामा उसे कण्ठस्थ था ( म्युनिख पाण्डु० : था। गजनी ने उसे २० हजार दिरहम पुरस्कार ७२बी०, ७३ ए०; मोहिबुल हसन : ९३ )। स्वरूप दिया था। वह सन् १०२०-१०२१ ई० में (२) जैनप्रकाश : श्रीवर ने स्पष्ट लिखा। दिवंगत हो गया। उसकी मृत्यु तूस में हुई थी। है कि योधभट्ट ने काश्मीरी भाषा में जैनप्रकाश ईरान के दर्शनीय स्थानों मे फिरदौसी की मजार है। नामक ग्रंथ लिखा था । उसमें सुल्तान के राज्यकाल किंबदन्ती है कि उसका जनाजा गाँव के फाटक से के वृतान्त का वर्णन लिखा था। वह दर्पण तुल्य था, निकल रहा था, तो महमूद गजनी का भेजा साठ हजार जिससे सुलतान के राज्यकाल का पूर्ण प्रतिबिम्ब मिलता। था। पीर हसन नाम 'वोदी बट' देता है--'बोदी बट' दिरहम पहँचा । फिरदौसी की पुत्री ने सब धन दानएक और शख्स था जिसे फिरदौशी का शाहनामा पुण्य में व्यय कर दिया। फिरदौसी ने जब बीस अज़बर याद था। बादशाह की महफिल में पढ़ा करता हजार दिरहम पाया था, तो गजनी के कंजूसी की था। इस शख्स ने जैन नामी एक किताब इलम मौसीफी में सुलतान के नाम पर लिखकर इनाम व (२) भट्टावतार : इनके विषय में अभी तक इकराम पाया (पृष्ठ १७९-१८०)। कुछ और ज्ञात नही है । तवक्काते अकबरी में उल्लेख पाद-टिप्पणी: किया गया है-लोदीभट्ट को पूरा शाहनाम कंठस्थ कलकत्ता संस्करण की ३७२वीं पक्ति है। था। उसने संगीत सम्बन्धी 'मामक' नामक एक ३९. (१) शाहनामा : शाब्दिक अर्थ महा पुस्तक की सुल्तान के नाम पर रचना की और इस काव्य, जिसमें किसी राज्य के राजा का वर्णन लिखा कारण वह सुलतान का कृपापात्र बना। (४३९जाता है। शुद्ध फारसी शब्द है। फारसी के प्रसिद्ध ६५८)। पाण्डुलिपि में पुस्तक का नाम बानक तथा कवि फिरदौसी ने शाहनामा ग्रन्थ की रचना की थी। फिरदौसी का जन्म खुरासान के कस्बा ___ लीथो संस्करण में 'मानक' या 'मानिक' या 'मायक' में सन् ९२० ई० में हुआ था। असदी नामक लिखा मिलता है। फिरिश्ता ने 'सहम' के स्थान कवि का शिष्य था। उसके गुरु ने इरान के पौरा- पर पर 'बूदीवट' लिखा मिलता है। णिक राजाओं के विषय में एक ग्रन्थ उसे दिया। (३) जैन विलास : इस ग्रंथ में सुलतान की उसी ग्रंन्थ के आधार पर फिरदौसी ने शाहनामा की उक्तियाँ लिपिबद्ध थी। रचना की थी। इसमें साठ हजार शेर हैं। इसने मा बजार और हर पाद-टिप्पणी: पाद २५ वर्षों के अथक परिश्रम के पश्चात् इस ग्रंथ को उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण की ३७३वीं २५ फरवरी सन् १०१० ई० में समाप्त किया। पंक्ति तथा बम्बई की श्लोक संख्या ४० है। महमूद गजनी ने खुरासान सन् ९९९ में विजय किया ४०. (१) रबाब : फारसी शब्द है । सितार
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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