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________________ १२८ जैनराजतरंगिणी [१:४:३४-३६ तुम्बवीणाघरः सोऽहं सर्वगीतविशारदः । उद्बद्धन्नवगीताङ्क कौशलं समदर्शयम् ॥ ३४ ॥ ३४. सर्वगीत-विशारद एव तुम्ब वीणाधारी मैने नवीन गीत आरम्भ कर कौशल किया। अन्येऽपि जाफराणाद्या मया सह नृपाग्रगाः। तौरुष्कान् दुष्करान् रागानगायन् वीणया समम् ॥ ३५॥ ३५. मेरे साथ अन्य भी नापग्रगामी जाफराण' आदि वीणा के साथ दुष्कर तुरुष्क के राग गाये। गीतं द्वादशरागाङ्क गायतां नः सभान्तरे । प्रीत्यैवैक्यमिवापन्नास्तन्त्रीकण्ठोत्थिताः स्वराः ॥ ३६ ॥ ३६. सभा में हमलोंगों के बारह राग' के गीत गाते समय वीणा एवं कण्ठ से निकले स्वर मानो प्रीति से ही एक हो गये थे। 'कहा जो गुण-रूप में श्रेष्ठ हो उसे अवसर देना ३५. जाफराण = जाफर : इस व्यक्ति का चाहिये ।' अप्सराएँ परस्पर अपनी श्रेष्ठता जनाने पुनः उल्लेख श्रीवर ने नही किया है। जोनराज तथा के लिये झगडने लगी। इन्द्र ने निर्णय का भार शुक भी उल्लेख नही करता। परशियन स्रोत से भी नारद पर छोड़ दिया। नारद ने तुरन्त कहा- इसके विषय मे कुछ प्रकाश नही पड़ता। जाफरान 'जो दुर्वासा को मोहित करे वही श्रेष्ठ है। वपु अर्बी शब्द है जिसका अर्थ कुंकुम तथा केशर होता नामक अप्सरा इस काम के लिये तैयार हो गयी है। जाफर शब्द भी अर्वी है, अर्थ नहर, नदी. खरबूजा है जाफर १४ इमामों से एक हुए है। (मार्क० : १ : ३०-४७)। नारद परिहास-पटु है । परिहास वशलोगों में झगड़ा करा देने तथा कीर्तन करने ३५. (२) तुरुष्क राग : तुरुष्क राग भारत में पारंगत है। श्रीवर ने उपमा दी है कि इन्द्र की मे तुर्को द्वारा आया। यह दो प्रकार का थासभा में जैसे नारद संगीत-कला-विशारद है उसी तुरुष्कगौड और तुरुष्कतोडी। तुरुष्कगौड राग में निषाद स्वर ग्रह और अंश था। इसमे ऋषभ और प्रकार सुलतान की सभा में मुल्ला जाद था। पंचम स्वर वर्ण्य थे और मन्द्र स्थान में गान्धार स्वर पाद-टिप्पणी : का अधिक प्रयोग था । कलकत्ता श्लोक की ३६७वी पक्ति है । द्वितीय जिस तोडी राग में गान्धार स्वर का अल्प प्रयोग पद के प्रथम चरण का पाठ संदिग्ध है। था और निषाद, ऋषभ और पंचम का अधिक ३४. (१) तुम्ब वीणा : तुम्ब अर्थात् तुम्बी पर प्रयोग था वह तुरुष्कतोडी कहलाता था। बनी वीणा तुम्ब वीणा कही जाती है । तीता कद्द, जो पाद-टिप्पणी : तरकारी के काम में नही आता, बहुत बड़ा होता कलकत्ता श्लोक की ३६९वी पक्ति है। प्रथम है। उसे ही लगभग चौथाई काटकर तुम्ब वीणा पद के प्रथम चरण का पाठ सन्दिग्ध है। बनायी जाती है। तुम्बी का प्रयोग सितार तथा ३६. (१) राग : राग की परिभाषा की वीणा दोनों में होता है। उसके कारण ध्वनि गई है-यो यं ध्वनि विशेषस्तु स्वर वर्ण विभूषितः । गूंजती है। जिस वीणा में तुम्बा लगा हुआ होता है, रञ्जको जन चित्ता नाम स रागः कथितो बुधैः ॥ उसे तुम्ब वीणा की संशा दी गयी है। वह ध्वनिविशेष जो स्वर एवं वर्ण से विभूषित पाद-टिप्पणी : हो और लोगों के चित्त का रञ्जन करे उसे राग कलकत्ता श्लोक की ३६८वीं पक्ति है। कहा जाता है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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