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________________ १:४ : २६-२९] श्रीवरकृता १२५ निर्गतं ननुदण्डान्तर्जालापिण्डं नभोन्तरे । उद्दण्डदण्डं सर्वेषां चण्डरश्मिभ्रमं व्यधात् ॥ २६ ॥ २६. आकाश में दण्ड से निर्गत उद्दण्ड, दण्ड सदृश, ज्वालापिण्ड, सब लोगों में सूर्य-रश्मि का भ्रम करा दिया। वह्निक्रीडनलीलाया युक्तिज्ञन महीभुजा । शिक्षयित्वा हमेभाख्यं तास्ताः सर्वाः प्रदर्शिताः ॥ २७ ।। २७. अग्नि क्रीडन लीला युक्तिवाले राजा ने हबीब' को सिखाकर, वह सब प्रदर्शित कराया। क्षारस्तदुपयोग्योत्र दुर्लभो योऽभवत् पुरा । तधु क्तिशिक्षया राज्ञा स्वदेशे सुलभः कृतः ।। २८ ॥ २८ पहले जो क्षार और उसका उपयोग यहाँ दुर्लभ था, वह युक्ति शिक्षा द्वारा, राजा ने अपने देश में सुलभ कर दिया। प्रश्नोत्तरमयी स्वोक्तिहभेभं प्रति या कृता । पारसीभाषया काव्यं दृष्ट्वाद्य कुरुते न कः ॥ २९ ॥ २९. राजा ने पारसी (फारसी) भाषा में जो कुछ प्रश्नोत्तर' किया, उसे देखकर, आज न नही काव्य करता है ? पाद-टिप्पणी: की प्रसिद्ध आतिशबाजी बनानेवाले कुछ हिन्दू २६. कलकत्ता संस्करण में उक्त श्लोक नही भी है । है। बम्बई संस्करण की श्लोक संख्या २६वां यथा Reat तवक्काते अकबरी के दोनों पाण्डुलिपियों मे वत है। 'हवीव' तथा लिथो संस्करण मे 'हल्व' (६५), फिरिश्ता के लीथो संस्करण मे 'जब' तथा रोजर्स पाद-टिप्पणी: ने भी 'जव' नाम दिया है। कलकत्ता की ३६०वी पंक्ति है। पीर हसन के फारसी और उर्दू दोनों संस्करण २७. (१) हबीब . सुल्तान जैनुल आबदीन के मे नाम जीव दिया है। वह लिखता है-इसी तरह पर्व बारूद बनाना लोग काश्मीर में नहीं जानते थ। एक जीव नामक आतिशवाज पैदा हआ, जिसके शानी एक मत है कि इसके पूर्व आतिशबाजी बनाने का जमाना की आँख ने इसके पहले न देखा था। मसाला बाहर से आता था। वह काश्मीर मे नही इसी शख्स ने फन आतिशबाजी में नई-नई चीजें मिलता था। सुल्तान ने हवीव को आतिशबाजी इजाद किये (द्र० फारसी : १९८; उर्दू: १७९), बनाने की कला में पारंगत कर दिया। इसके फिरिस्ता : २ : ३४४; तवक्काते० : ३ : ४३९ । पश्चात् आतिशबाजी काश्मीर में बनाना साधारण पाद-टिप्पणी । बात हो गयी। हबीब के विषय और जानकारी २८. कलकत्ता की ३६१वी पंक्ति है। नही मिल सकी है। आतिशबाजी उन दिनों भारत पाद-टिप्पणी: में बनानेवाले प्रायः मुसलमान ही होते थे। काशी कलकत्ता की ३६२वीं पंक्ति है। में सभी आतिशबाज मुसलमान है, जबकि जालौन २९ (१) प्रश्नोत्तर : श्रीवर के वर्णन से
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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