SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 229
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १ : ३ : ११५-११७ ] श्रीवरकृता इत्थं त्रित्रिंशमे वर्षे ज्येष्ठं निष्कास्य युक्तितः । हाज्यखानान्वितस्तुष्टो नगरं प्राप भूपतिः ॥ ११५ ॥ ११५. इस प्रकार राजा तैतीसवें ' वर्ष युक्तिपूर्वक ज्येष्ठ पुत्र को निकालकर, हाजी खाँ सहित सन्तुष्ट होकर, नगर में प्रवेश किया । शिशिरसमये योऽभूत् क्लिष्टश्चिरं हतपक्षतिधरणिकुहरेष्वन्तः कालं निनाय शुचाकुलः । समसमये प्राप्योद्यानं विकासिलतोज्ज्वलं किसलयरतः सोऽयं भृङ्गः सुखं रमते पुनः ।। ११६ ॥ ११६. जिसने शिशिर के समय में हतपक्ष होकर, चिरकाल कष्ट पाया और ग्रीष्म से आकुल होकर, पृथ्वी कुहर में कालयापन किया, किसलयरत वह भृंग, कुसुम समय में विकसित ताओ से सुन्दर उद्यान को प्राप्त कर, पुनः सुखपूर्वक विहार करता है । अस्मिन्नवसरे तुष्टाद्धाज्यखानो धृतं चिरात् । प्रापज्जनकाज्जनकोपमात् ।। ११७ ।। यौवराज्यपदं ११७. इसी अवसर पर हाजी खॉ तुष्ट जनक' सदृश जनक से चिरकाल से धृत युवराज पद प्राप्त किया । तवकाते अकबरी की पाण्डुलिपियों में 'शाहमंक' तथा 'शाह विक' तथा लीथो संस्करण में 'शाह नीक' लिखा गया है । 'शाह जह' फिरिश्ता के लीथो संस्करण में दिया गया है। कर्नल विग्गस ने शाहाबाद नाम दिया है । रोजर्स ने नाम नही दिया है। कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इण्डिया में लिखा गया है कि आदम खाँ सिन्ध की ओर भाग गया। द्र०४ : २११, २७०, २७२, ५५९ । पाद-टिप्पणी : १११ बम्बई का ११४ श्लोक तथा कलकत्ता की ३२७वीं पंक्ति है । ११५. ( १ ) तैतीसवें वर्ष : ४५३३ = सन् १४५७ ई० = विक्रमी १५१४ = शक सं० १३३९ = कलि-गताब्द ४५५८ वर्ष । तवक्काते अकबरी में उल्लेख है - 'सुल्तान हाजी खाँ को अपने साथ लेकर शहर ( श्रीनगर ) आया और अपना वलीअहद ( युवराज ) नियुक्त किया ( ४४४-६६८ ) ।' पाद-टिप्पणी : बम्बई का ११५ श्लोक तथा कलकत्ता की ३२८वी पंक्ति है । पाद-टिप्पणी : बम्बई का ११६ श्लोक तथा कलकत्ता की ३३०वी पंक्ति है । ११७. ( १ ) जनक : मिथिलापति राजा जनक तथा प्रेत है । शब्द विलष्ट है । पिता से अर्थ अभि (२) युवराज : द्रष्टव्य टिप्पणी : १ : २ : ५; म्युनिख पाण्डु० : ७६ ए० । तवक्काते अकबरी ( ४४४ - ६६८ ); फिरिश्ता ( ४७३ व ३४६ ) । द्र० : १२:५२ : ११, १७ ३ : २, ६, ४ : २१; रामा० : अयोध्याकाण्ड ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy