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________________ १०४ जैनराजतरंगिणी [१: ३ : ९७-९८ धिक् तं यः पैतृके देशे रक्षणीयेऽपि निष्कपः । परदेशजयं त्यक्त्वा तादृङ् निन्धं समाचरत् ।। ९७ ॥ ९७ उसे धिक्कार है जो, कि रक्षणीय भी पैतृक देश के प्रति निर्दय हो गया। पर-देश का जय त्याग कर, उस प्रकार का निन्दनीय कृत्य किया। पापास्ते शिखजादाद्याः गृहीत्वोभयवेतनम् । भूपमुद्वेजयामासुः फलं यैरनुभूयते ।। ९८ ॥ ९८ शिखजादा' आदि उन पापियों ने दोनों तरफ से वेतन ग्रहण कर, राजा को उद्वेजित किया और जिन लोगों ने फल का भी अनुभव कर लिया। तवक्काते अकबरी में उल्लेख है-'सुल्तान ने ३१०वी पंक्ति है। समाचार पाकर बहुत बडी सेना आदम खों के विरुद्ध ९८. (१) शिख : एक मत है कि यह शब्द भेजी। घोर युद्ध हुआ। दोनों सेनाओं के बहुत लोग मारे गये । आदम खाँ पराजित हो गया। सोयापुर - शिकदार है । परगनों के हाकिम को शिकदार कहते ( सुय्यपुर-सोपोर ) का पुल जो बहत ( वितस्ता- थे (फिरिश्ता तथा तारीख हसन पाण्डु० : २ : झेलम) नदी के ऊपर तैयार किया गया था टूट गया, फो० : ९६ ए.)। शिकदार लोग परगनों के तो आदम खाँ के लगभग ३०० आदमी भागते समय हाकिम थे। ( फिरिश्ता ६५७ तथा तारीखे हसन : डूब गये ( ४४४-६६६ )। पाण्डु० : ९६ ए० । ) शाब्दिक अर्थ शेखजादा अर्थात् फिरिश्ता लिखता है-वे सैनिक जो (शीवपूर) शेखों के पुत्र होता है। नवाबजादा आदि के समान सोपोर के नगर में भाग गये थे, उनमें ३०० सैनिक वेहुत ( वितस्ता-झेलम ) में डूब मरे ( ४७३ )। शेखजादा शब्द प्रकट होता है। पंजाब में परगना से नीचे का स्थान 'शिक' था। इसे कस्बा भी तवक्काते अकबरी में स्थान का नाम 'सह' तथा 'मह' पाण्डुलिपियों में दिया गया है। लीथो संस्करण कहते थे। पंजाब में शिक तथा 'सदी' शब्दों में नाम 'वजह' तथा फिरिस्ता ने 'पंजह' दिया है। का प्रयोग मिलता है। अमीर-ए-सद का ओहदा कर्नल विग्गस, रोजर्स अथवा कैम्ब्रिज पर तहसीलदार के समान था। सुल्तानों के समय पंजाब ऑफ इण्डिया में स्थान के नाम का उल्लेख नहीं है में 'शिक' (जनपद) तत्पश्चात् 'मदीना' अर्थात् सब( ३ : ४४४ = ६६७)। डिवीजन या प्रखण्ड था। प्रत्येक 'मदीना' पुनः १०० पाद-टिप्पणी: गाँवों के समूह 'सदी' या परगनों में विभाजित बम्बई का ९६वा श्लोक तथा कलकत्ता की थे। शिक का शासक 'आमिल', 'नाजिम' या ३०९वीं पंक्ति है। 'शिकदार' कहा जाता था (पंजाब अण्डर सुल्तान्स : पाद-टिप्पणी: निज्जर : पृ० १०३-१०४; द्र० : १ : ३ : १०२, बम्बई का ९७दा श्लोक तथा कलकत्ता की १०३; २ :५१)।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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