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________________ जैनराजतरंगिणी [१:३ : ३६-३७ मूलोत्पाटे दशास्योऽरिममेशेन विवर्धितः । इतीव खिन्नः कैलासः सौधव्याजादिवागतः ।। ३६ ॥ ३६. मूलोत्पाटन करने के कारण, मेरा जो शत्रु रावण, जिसे शंकर ने बढाया है, अतएव खिन्न होकर, कैलाश सौधों के व्याज से वहाँ आ गया था। सुधासितगृहा यत्र सन्नागारवसुंधरम् । जयापीडपुरं जीर्ण हसन्तीव रुचिच्छलात् ॥ ३७॥ ३७. जहाँ पर सुधा से श्वेत गृह वालों पुरी, अपनी प्रभा के व्याज से, उत्तम गृह एवं धन रहित, जीर्ण जयापीडपुर का उपहास करती थी। पाद-टिप्पणी : शिव ने पादांगुष्ट से कैलाश दबाया। रावण की बम्बई ३५वा श्लोक तथा कलकत्ता की २४९वी भुजाये पर्वत के नीचे दब गयी । रावण उसी अवस्था पंक्ति है। मे एक सहस्त्र वर्षों तक शिव की प्रार्थना के साथ ३६. (१) रावण : विश्रवस् का पुत्र तथा विलाप करता रहा। शिव ने प्रसन्न होकर, उसे पुलस्त्य ऋषि का पौत्र रावण था । शिव के द्वारा चन्द्रहास नामक खङ्ग दिया। अपने भक्तों में स्थान कैलाश पर्वत के नीचे इसकी भुजाये दब गयी थी। दिया। रावण सुवण शिवालङ्ग आ दिया। रावण सुवर्ण शिवलिङ्ग अपने साथ रखता उस समय इसने भीषण चितकार (राव० : 'सुदारुण') था। शंकर के कारण प्रतापशाली हो गया। श्रीवर इसी कथा की ओर संकेत करता है। किया 'रावा' से इसका नाम रावण पड़ गया (रा०: अयोध्या : १६ : ३९; सु० २३ : ८) एक मत है (२) कैलाश : शंकर का निवास स्थान कैलाश कि तामिल इरैवण (राजा) का संस्कृत रूप रावण है। उन्हें कैलाशपति कहा जाता है । यह हिमालय के है। रायपुर के निवासी गोड अपने को रावण का मध्य स्थित है। हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थान है । वंशज मानते हैं। इसी प्रकार कटकैया जिला रांची चीन के तिब्बत लेने के पर्व कैलाश एवं मानसरोवर में 'रावना' परिवार आज भी रहता है। रावण का की प्रतिवर्ष सहस्रों यात्री यात्रा करते थे। इस उपनाम दशग्रीव है। वह लंकापति था। सीता- समय यहाँ की यात्रा पूर्णतया बन्द हो गयी है । हरण के कारण राम-रावण युद्ध में मारा गया था। कैलाश सिन्ध-महानद के उत्तरी तट पर स्थित है। महाभारत में रावण को विश्रवस् पिता तथा इस पर्वतमाला का सर्वोच्च हिमाच्छादित शिखर पुष्योत्कटा माता का पुत्र कहा गया है। विश्रवस् का राकापोशी २५५५० फीट ऊँचा है। मानसरोवर दूसरा पुत्र कुबेर था। उसने अपने पिता की सेवा के निकटस्थ कैलाश शिखर २२०२८ फुट ऊँचा है। लिये पुष्पोत्कटा, राका एवं मालिनी सन्दर कन्याओं गोलाकार है। ऊपरी शिखर सर्वदा हिमाच्छादित को नियुक्त किया था। इनमें पुष्पोत्कटा से रावण रहता है । उस पर नीचे आती हिमानी कृष्ण वर्ण एवं कुंभकर्ण, राका से खर एवं मालिनी से विभीषण पर्वत पर शिव की काली जटा से गंगावतरण की का जन्म हुआ था (वन०:२५९ : ७)। इस प्रकार स्मृति दिलाती है। कैलाश हिन्द मन्दिर तल्य दर रावण ब्रह्मा का वंशज था। से लगता है। यह देवताओं का आवास माना जाता कुबेर को पराजित कर इसने पुष्पक विमान ले । है। द्रष्टव्य टिप्पणी : १: १२१ । लिया। उस पर चढकर कैलाश के ऊपर से जा रहा पाद-टिप्पणी : था। विमान अचानक रुक गया। कैलाश को उखा- ३७. बम्बई का ३६वां श्लोक तथा कलकत्ता ड़ने की चेष्टा करने लगा। कैलाश हिलने लगा। की २५० वीं पंक्ति है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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