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________________ तृतीयः सर्गः तुष्टः प्रसादमतुलं कुरुते क्षणाद्यः क्रुद्धः प्रजासु कुरुते भयमप्रतय॑म् । उन्मत्तपार्थिवपतेरिव हन्त धातो लीलास्वतन्त्रचरितं भुवि बुध्यते कैः ॥ १ ॥ १. सन्तुष्ट होकर क्षणभर में प्रजाओं में, अतुलनीय प्रसाद एवं क्रुद्ध होकर, असीम भय प्रदान कर देता है, उत्तम राजा के समान, उस विधाता ने लीला भरे, स्वतन्त्र चरित को पृथ्वी पर कौन लोग जान सकते हैं ? षट्त्रिंशवर्षदुर्भिक्षदुःखविस्मरणं जनः। न यावदकरोत् तावदष्टात्रिंशेऽपि वत्सरे ॥२॥ २. जब तक लोग छत्तीसवें वर्ष के दुर्भिक्ष दुःख का विस्मरण नहीं कर सके थे, तब तक ३८ वें वर्ष में भी वृष्टया सह रजोवर्षमपतद् गगनाद् भुवि । उदीपक्षतशाल्युत्थभाविदुर्भिक्षसूचकम् पतशाल्युत्यमाविदाभक्षसूचकम् ॥ ३॥ ३. वृष्टि के साथ आकाश से पृथ्वी पर धूल वृष्टि' हुई, जो कि बाढ़ से शालि के नष्ट हो जाने के कारण, भावी दुभिक्ष की सूचक थी। पाद-टिप्पणी : पाद-टिप्पणी : १. उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण का २१४वीं ३ पाठ-बम्बई। पंक्ति तथा बम्बई का प्रथम श्लोक है। (१) धूल वृष्टि : ध्वंस, बरबादी, तबाही पाद-टिप्पणी : का पूर्व सूचक या लक्षण है। २.(१) छत्तीसवें वर्ष : ४५३६ सप्तर्षि = (२) उदीप : उदीप का अर्थ जलप्लावन, सन् १४६० ई० = संवत् विक्रमी १५१७ = शक बाढ़ एवं काश्मीरी भाषा में 'पीयो' या 'प्यू' कहते १३८२ = कति गताब्द ४५६१ वर्ष । है। फारसी इतिहासकार दुर्भिक्ष के पश्चात् जल(२) अड़तीसवें वर्ष : ४५३८ सप्तर्षि = प्लावन का उल्लेख नहीं करते । श्रीवर का वर्णन सन् १४६२ ई० = विक्रमी संवत् १५१९ = शक ठीक है क्योंकि उसके आँखों के सम्मुख जलप्लावन १३८४ - कलिगताब्द ४५६३ वर्ष । तथा धूल वृष्टि दोनों हुये थे।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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