SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७३ १:२:३६] श्रीवरकृता पदवाक्यतर्कनवकाव्यकथा बहुगीतवायरसनृत्यकलाः । सुरतप्रपञ्चचतुरा वनिताः ___क्षुधितस्य नैव रचयन्ति सुखम् ॥ ३६ ॥ इति जैनराजतरङ्गिण्यां पण्डितश्रोवरविरचितायां षट्त्रिंशद्वर्षे दुभिक्षवर्णनं नाम द्वितीयः सर्गः ॥ २॥ ३६. पद्वाक्य, तर्क एवं नवीन काव्य, कथा, गीत, वाद्य, रस, नृत्य, कलायें तथा सुरति प्रपंच में दक्ष बनितायें भूखे को सुख नहीं देतीं। पण्डित श्रीवर विरचित जैनराजतरंगिणी में ३६ वें वर्ष का दुर्ति द्वितीय सर्ग समाप्त हुआ। (११) घटादि वादन, (१२) चर्म-कर्म, (१३) चर्म पाद-टिप्पणी : उतारना, (१४) चित्रकला, (१५) चोली आदि ३६. उक्त श्लोक कलकत्ता संस्करण का २१३सीना, (१६) भाप प्रयोग जलवाराग्नि, (१७) जीन, वीं पंक्ति तथा बम्बई का ३६वा श्लोक है। हाथी का हौदा आदि बनाना, (१८) टोकरी बनाना, नाना पाद-टिप्पणी: र (१९) तेल उत्पादन, (२०) तैरना, (२१) ताम्बूल, (१) ३६ वर्ष : बम्बई संस्करण मे षट्त्रिशं' (२२) दुग्ध प्रयोग, (२३) दण्ड कार्य, (२४) द्यूत वर्ष अर्थात् ३६ वर्ष कलकत्ता के २६ वर्ष के स्थान क्रीडा, (२५) धातु मिश्रण, (२६) धातु शस्त्र निर्माण, पर दिया गया है। किन्तु कलकत्ता संस्करण के (२७) धात्यौषधि, (२८) नटकर्म, (२९) नर्तन, पंक्ति १८४ पृ० ७ ( तृतीया राजतरंगिणी ) 'षट्(३०) लवण उत्पादन, (३१) नौका-रथादि यान त्रिशंवत्सरे' दिया गया है। अतः इतिपाठ में ३६ के निर्माण, (३२) पाषाण धातु भश्म, (३३) पाककर्म, (३४) बर्तन बनाना, (३५) वर्तन माजना, (३६) स्थान पर मुद्रण की गलती से त्रिंश के स्थान पर 'विंश' छप गया है। बम्बई संस्करण में इसी तरंग मदिरा बनाना, (३७) मल्लयुद्ध, (३८) मिष्ठान्न के श्लोक ७ मे "त्रिंश' शब्द कलकत्ता संस्करण के बनाना, (३९) मिश्रित धातु का पृथकीकरण, (४०) समान दिया गया है। बम्बई इतिपाठ का यह अंश यज्ञीय रज्जु बनाना, (४१) रतिज्ञान, (४२) रत्न ही मान्य होना चाहिए। परीक्षा, (४३) रूप परिवर्तन, (४४) रंगरेजी, (४५) वस्त्र सज्जा, (४६) लक्ष्यभेद, (४७) वस्त्र प्रक्षालन, श्रीवर १: १ : ८६ मे अट्ठाइसवें वर्ष का (४८) वाद्य संकेत, (४९) वादन द्वारा व्यूह रचना, उल्लेख करता है। अतएव क्रम के अनुसार भी २६ (५०) विविध मुद्राओं द्वारा देवपूजा, (५१) वृक्षा- वर्ष के पश्चात् का समय होगा। वह ३६ वर्ष ही रोहण, (५२) शय्या भाजन, (५३) शल्य क्रिया, हो सकता है। (५४) शस्त्र संचालन, (५५) शिशुपालन, (५६) कलकत्ता संस्करण में इस सर्ग में ३६ श्लोक शीशे का बर्तन बनाना, (५७) सारथ्य, (५८) ब्रह्म अर्थात् पंक्ति संख्या १७८ से २१३ तक है । बम्बई आसन, (५९) रतिज्ञान, (६०) सरोवर प्रासाद् हेतु भूमि योजना, (६१) सेवा, (६२) रसचारी, (६३) संस्करण में भी ३६ श्लोक हैं। श्लोक संख्या बम्बई स्वर्ण परीक्षण, (६४) सुलेखन । तथा कलकत्ता के समान है। जै. रा. १०
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy