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________________ १:२:९] श्रीवरकृता अभवन् पत्रपुष्पौधा धूलिधूसरता नताः । भाविदुर्भिक्षपीडार्तजनचिन्तावशादिव ___ ९. धूल-धूसरित एवं पत्र-पुष्पपुज, भावी दुर्भिक्ष की पीड़ा से पीड़ित जनों की चिन्तावश ही, मानो नत हो गये थे। संघर्ष में फातिंगों के समान कूदते, यादववंशी जलने राज के द्वितीय पुत्र का नाम कौशिक था। उसने लगे। कृष्ण ने जब अपने पुत्र साम्ब, चारुदेष्ण, चेदि देश में अपने वंश की राज्य स्थापना की थी। प्रद्युम्न, पौत्र अनिरुद्ध तथा गद को रणशय्या पर विदर्भराज का त्रितीय पुत्र लोमपाद था। सात्वत देखा, तो उन्होंने कुपित होकर, शेष यादवो का भी राजा ने इक्ष्वाकुवंशियों से मथुरा राज्य छीनकर, संहार कर दिया। इस कथा की प्रसिद्धि इसलिए अपना राज्य स्थापित किया था। सात्वत राजा के है कि महापराक्रमी और वीर यादव लोग बाहरी यजमान, देवावृध, वृष्णि एवं अंधक नामक चार पुत्र शत्रु अथवा आन्तरिक शत्रुओं द्वारा नहीं मारे गये थे। उनके नामों से अलग-अलग राजवंशों की बल्कि स्वतः परस्पर लड़ कर मर गये ( मौसल- स्थापना हुई। भजमान शाखा मथुरा में, देवावृत पर्व : १-३)। तथा उसका पुत्र बभ्र ने मार्तिकावत नगरी मे भोज प्राचीन यदु किंवा यादववंश पुरुवंश के समान राजवंश की स्थापना किया था। अंधक राजा के ही प्रसिद्ध तथा भारत के अनेक राजवंशों का स्रोत चार पुत्र थे। उनमें कुकुर एवं भजमान प्रमुख थे । रहा है। यह वंश दो कालों में विभाजित किया जा उन्होंने कुकुर तथा अंधक राजवंशों की स्थापना किया सकता है । क्रोष्टु से सान्वत तथा सान्वत के पश्चात था । कुकुर वंश मे कंस तथा अँधक में कृष्ण हुए थे। इस वंश की अनेक शाखाये हुई । पुराणों में इस वंश वृष्णि राजा के चार पुत्र थे। उन्होंने सुमित्र, युधा १ का वर्णन अत्यधिक किया गया है। तथा राजवंश जित, देवमीढूष तथा अनमित्र राजवंशों तथा की तालिकाएँ भी दी गयी है। क्रोष्ट से परावत शाखाओं की स्थापना की । सुमित्र शाखा में सत्राजित राजा के काल तक राजाओं की तालिका में भेद नही तथा भंगकार, युधाजित में श्वकल्क तथा अक्रूर, है । तथापि कई पुराणों में पथश्रवस, उशनस, रुक्म- देवमीढूप में वसुदेवादि तथा अनमित्र में शिनि युयवचन एवं निवृत्ति राजाओं के पश्चात एक पीढ़ी धान, सात्यकि, असंग आदि थे। वसुदेव के नाम से अधिक दी गयी है। परावृत्त राजा के दो पुत्र थे। वसुदेव वंश हुआ। अंधकवंश की एक शाखा उनमें ज्यामद्य कनिष्ट पुत्र था। उससे यदुवंश विदूरथवंश था। वायु एवं मत्स्य पुराणों में ११ वंश चला था। उसने तथा उसके पुत्र विदर्भ ने विदर्भ- में एक शत यदुवंश की शाखाये दी गयी है राज्य की स्थापना किया था। उसके ज्येष्ठ पुत्र (वायु०:९६ : २५५; मत्स्य : ४७ : २५-२८)। रोमपाद ने विदर्भराज्य की उन्नति की। इसी वंश यदुवंश की शाखाओं का विस्तार दक्षिण भारत में में क्रथ, देवक्षत्र, मधु आदि राजा उत्पन्न हुए थे। भी हुआ था ( हरिवंश० : २ : ३८ : ३६-५१ )। इसी वंश में उत्पन्न हुए सात्वत राजा ने राज्यवृद्धि यदु राजा के एक पुत्र सहस्त्राजित ने हैहयवंश की किया। मध से सात्वत राजा तक राजाओं की स्थापना किया था। हैहयवंश यादववंश की ही एक तालिका में पुराणों में एकवाक्यता नही है। विदर्भ- शाखा पुराणों के अनुसार थी। जै. रा. ९
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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