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________________ जैनराजतरंगिणी [१:२८ बभूव वर्षः षट्त्रिंशः सर्ववृष्णिकुलक्षयात् । भयकृत् सर्वजन्तूनां भारतादिति विश्रुतम् ॥ ८॥ ८. सभी प्राणियों के लिये ३६ वा वर्ष भयकारी होता है। महाभारत में सब यदुवंशियों के विनाश होने से प्रसिद्ध है। (२) धूल वर्षा : यह अशुभ तथा भावी दिया गया। और नगर में घोषणा कर दी गयो कि विपत्ति का सूचक माना जाता है। कोई मदिरापान न करे। पाद-टिप्पणी: अन्धक एवं वृष्णियों ने सकुटुम्ब तीर्थयात्रा का ८. (१) सत्तीसवाँ वर्ष : द्रष्टव्य टिप्पणी : संकल्प किया । वे खाद्य एवं पेय सामग्रियों के साथ (१ : २ : ७)। महाभारत मौसलपर्व (१:१) द्वारका से प्रभासक्षेत्र मे आ गये । वह स्थान नट, मे उल्लेख मिलता है नर्तन, एवं वाद्यों से पूर्ण हो गया। प्रभासक्षेत्र मे षटत्रिशे त्वथ सम्प्राप्ते व कौरवनन्दनः । यादवों ने मद्यपान आरम्भ किया। श्रीकृष्ण के ददर्श विपरीतानि निमित्तानि युधिष्ठिरः ॥१:१ समीप ही कृतवर्मा, बलराम, सात्यकि, वभ्र एवं गद मद पीने लगे । सात्यकि मद से मत्त होकर कृतवर्मा षट्त्रिंशेऽथ ततो वर्षे वृष्णी नाम नयो महान् । का उपहास करने लगे। उसने रात्रि में निहत्थों अन्योन्य मुसलस्ते तु निजघ्नुः काल चोदितः । १:१३ की शयनावस्था मे हत्या किया था। प्रद्युम ने भी (२) यदुवंश : कुलक्षय, वंश विनाश जाति कृतवर्मा का तिरस्कार किया। कृतवर्मा क्रोधित हो संहार की जहाँ उपमा देनी होती है, वहाँ यादव । गया, बायें हाथ की उँगली से निर्देश करता हुआ बोलावंश संहार की बात की जाती है। इसका गुरुत्व 'तुमने हाथ कटे निहत्थे रणक्षेत्र मे उपवास के लिये इसलिये अत्यधिक है कि भगवान कृष्ण, बलराम की बैठे भूरिश्रवा की हत्या क्यों की ?' सात्यकि क्रोधपूर्वक उपस्थिति में संहार हआ और वे रोक नहीं सकेर उठा और कृतवर्मा का मस्तक काट दिया। परस्पर सात्यकि जैसे महाभारत के महारथी द्वारा संहार संघर्ष आरम्य हो गया। कृष्ण उसे रोक न सके । का आरभ्य हुआ और उससे कोई बच नही सका। भोज एवं अन्धक वंशियों ने सात्यकि को घेर लिया। एक समय महर्षि विश्वामित्र, कण्व एवं नारद सात्यकि को घिरा देखकर प्रद्युम्न उसे बचाने के जी द्वारिका गये थे । यदु वालक सारण आदि साम्ब लिये कूद पड़े। प्रद्युम्न भोजों तथा सात्यकि अन्धों को नारीवेश में विभूषित कर मुनियों के सम्मुख ले से भिड़ गये। देखते-देखते दोनों ही कृष्ण के सम्मुख गये । उन्होंने कहा-'महात्मन् ! यह वभ्र की पत्नी ही मार डाले गये । कृष्ण ने क्रोधित होकर एक है। कृपया बताइये इसके गर्भ में क्या है ?' महर्षिगण मट्ठी एरका उखाड़ लिया। वह घास उनके हाथ वञ्चनापूर्ण बालकों की बात सुन कर कुपित हो में आते ही मसल बन गयी। कृष्ण के इस कृत्य के गये। वे बोले-'यादवकुमारों! श्रीकृष्ण का यह पश्चात सभी लोगों ने एरका उखाड़ लिये। उनके साम्ब भयंकर लोहे का मूसल उत्पन्न करेगा जो हाथों में आते ही वह मूसल हो गयी। मूसल जो वृष्णि एवं अन्धक वंश के विनाश का कारण होगा। चूर्ण कर समुद्र में फेंका गया था कहावत है कि साम्ब से जब मूसल उत्पन्न हुआ तो वे उसे यदु- उसी से एरक उत्पन्न हो गया था। साधारण तिनका वंशियों के राजा उग्रसेन को दिये । राजा ने उसे ने मसल का रूप ले लिया। उसो मूसल से पिता ने कुटवा कर चूर्ण बना दिया। लोहचूर्ण समुद्र में फेंक पुत्र को और पुत्र ने पिता को मार डाला। उस
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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