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________________ १. ११६८ ) , 7 एक ही दिन हुआ था। दोनों ही गदायुद्ध में पारंगत थे । द्रोणाचार्य ने पाण्डवों के समान दुर्योधन को भी अस्त्र-शस्त्र का शिक्षा दिया था । पाण्डवों का यह शत्रु था। उन्हे विष खाक्षागृह आदि उपायों द्वारा मार डालने का प्रयत्न किया था । धृतराष्ट्र ने पाण्डवों को आधा राज्य देकर इन्द्रप्रस्थ में रखा था । मामा शकुनी द्वारा जुआ मे पाण्डवों का राज्य के लिया । पाण्डव वन चले गये । अज्ञातवास किया । वनवास से लौटने पर पाण्डवों का राज्य नहीं लौटाया । अतएव महाभारत का युद्ध हुआ । दुर्योधन मानी तथा हठी था । भीम ने गदायुद्ध के नियमों को तोड़कर, इस पर प्रहार कर मार डाला, क्योंकि गदायुद्ध मे नाभि के नीचे गदा प्रहार नहीं किया जाता । भीम ने नाभि के निम्न भाग जंघा पर प्रहार किया था। श्रीवरकृता ( २ ) द्रोणाचार्य : आंगिरसगोत्रीय भरद्वाज ऋषि के पुत्र थे । कृपाचार्य की बहन इसकी पत्नी थी । उससे अश्वत्थामा पुत्र था । द्रोण का आश्रम गंगाद्वार अर्थात् हरिद्वार में था। बृहस्पति एवं नारद के अंश से द्रोणाचार्य का जन्म, द्रोण कलश में हुआ था । अतएव नाम द्रोणाचार्य पड़ा था। पिता द्वारा ही ऋग्वेद एवं धनुर्वेद का अध्ययन किया। अग्निवेश नामक चाचा ने इनको आग्नेयास्त्र दिया था । विराटराज हुपद द्रोण का सहपाठी या किन्तु कालान्तर में शत्रु हो गया था। कौरव एवं पाण्डव दोनों को इसने अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दिया था । दुर्योधन को युद्ध से विरत रहने के लिये बहुत समझाया परन्तु दुर्योधन ने हठ किया। प्रोगाचार्य ने दुर्योधन की ओर से महाभारत युद्ध में भाग लिया था । दशवें दिन कौरवों के प्रथम सेनापति भीष्म की मृत्यु के पश्चात् द्रोणाचार्य कौरवों के सेनापति हुए। युद्ध के पन्द्रहवें अर्थात् अपने सेनापतित्व के पाँचवें दिन इनका देहावसान अश्वत्थामा मर गया यह समाचार उड़ाकर किया गया । पुत्रशोक से द्रोणाचार्य युद्धभूमि में विह्वल हो गये । इस परिस्थिति में धृष्टघुम्न ने निःशस्त्र द्रोण का संग से वध कर दिया । ५५ युद्ध कौरवों की ओर से कर रहे थे परन्तु सहानुभूति इनकी पाण्डवों के साथ थी । (३) शल्य वाल्हीक एवं मद्र देश के राजा शल्य थे । पाण्डव नकुल एवं सहदेव के सगे मामा थे । उनकी माता माद्री शल्य की बहन थी । माद्री पाण्डु के साथ सती हो गयी थी । कुन्ती ने अपने पुत्रों के समान नकुल एवं सहदेव का लालन-पालन किया था । महाभारत युद्ध मे अपने भानजो की ओर से युद्ध में सम्मिलित होना, शल्य के लिये स्वाभाविक था । वह सेना सहित पाण्डवों की सहायता के लिये चला । मार्ग में दुर्योधन ने इसका इतना स्वागत किया कि कौरव पक्ष मे सम्मिलित हो गया । युधिष्ठिर ने उसे कर्ण के तेज भंग कराने की प्रतिज्ञा कराया । यह अतिरथी था। महाभारत युद्ध मे कर्ण का सारथी बन कर उसे हतोत्साहित करता था। उपहासपूर्ण ववनों द्वारा कर्ण का इसने तेज भंग किया था । कर्णवध के पश्चात् कौरवों का सेनापति हुआ । केवल आधा दिन इसने सेनापतित्व किया था । युधिष्ठिर के द्वारा पौष कृष्ण अमावस्या के दिन युद्धस्थल में मारा गया वह कौरवपक्ष से युद्ध करता था परन्तु इसकी सहानुभूति पाण्डवों के साथ थी । (४) भीष्म: कुरु राजा शन्तनु एवं माता गंगा से इनकी उत्पत्ति हुई थी । आठवें वसु के अंश से उत्पन्न हुए थे । बाल ब्रह्मचारी थे । भीष्म का शाब्दिक अर्थ भयंकर है। पराक्रमी एवं ध्येयनिष्ठ राजर्षि रूप में व्यास ने महाभारत मे इनका चरित्र चित्रण किया है । इन्हें गागेय कहा जाता है । शन्तनु ने हस्तिना पुर में लाकर उन्हे युवराज बनाया था। कालान्तर में भीवर कन्या सत्यवती पर शन्तनु आसवत हो गये। धीवर ने राजा को सत्यवती देना इसलिये अस्वीकार किया कि भीष्म के रहते, उसका पुत्र राजा नहीं हो सकेगा । पितृसुख के लिये भीष्म ने आजन्म अविवाहित ब्रह्मचारी रहकर 'सत्यवती के पुत्रों की
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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