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________________ जैनराजतरंगिणी [१:१:१६६-१६८ किमुच्यते नृशंसत्वं येन शरपुरान्तरे । जन्ययात्रागतो मोहान्निहतः पथिकव्रजः ॥ १६६ ॥ १६६. उसकी नृशंसता क्या कही जाय ? जिसने सूरपुर' में वरयात्रा में आगत, पथिक समूह को मार डाला। यस्यां मन्दप्रभो भास्वान् गणैः सर्वैविलोकितः । दक्षिणस्या दिशस्तस्याः प्रवासी स नृपोऽभवत् ॥ १६७ ॥ १६७. जिस दिशा में सब लोगों ने सूर्य को ही मन्द प्रभायुक्त देखा, वह राजा उसी दक्षिण दिशा का प्रवासी हआ। दुर्योधनार्पितरसा गुरुशल्यविष्टा भीष्मप्रियाः परहतिं प्रति दत्तकर्णाः। ये धर्मजातिविमनस्कतया कृपेच्छा स्ते कौरवा इव रणे न जयं लभन्ते ॥ १६८ ॥ १६८. दुष्टों के हाथ में पृथ्वी का भार देने तथा शल्य (भाला) पर आश्रित विश्वास रखने वाले भयकरताप्रिय, दूसरों के हानि के लिये दत्त कर्ण (चैतन्य) एवं धर्म-जाति के प्रति उदासीनता के कारण, कृपा के इच्छुक, जो होते हैं, वे लोग दुर्योधन' को पृथ्वीभार समर्पितकर्ता गुरु एवं शल्य पर निष्ठाकारी भीष्म प्रिय, पर-पक्ष की हानि हेतु कर्ण को लगाने वाले, धर्म-गोत्र से उदासीन कृपाचार्य को चाहने वाले, कौरवों के समान रण में जय प्राप्त नहीं करते। पाद-टिप्पणी : दक्षिण है। दक्षिण दिशा यम की दिशा है। वही १६६. (१) शूरपुर = द्रष्टव्य टिप्पणी श्लोक उस दिशा का राजा है। मृत्यु के पश्चात् मनुष्य का १ : १ : १०७ । तवक्काते अकबरी में उल्लेख है- पैर दक्षिण दिशा की ओर कर दिया जाता है। 'हाजी खाँ हरपुर की तरफ भागा और आदम खां ने मुसलमान भी अपना शव दक्षिण दिशा की ओर पैर तुरन्त उसका पीछा कर पकड़ना चाहा' (४४२- कर गाड़ते है। श्मशान सर्वदा जनस्थान के दक्षिण ४४३ = ६६४)। तवक्काते अकबरी के पाण्डुलिपि में दिशा की ओर बनाया अथवा रखा जाता है। कल्हण 'नलशीरपुर' 'वीरह जूद' और लीथो संस्करण में ने भी इसी अर्थ में दक्षिण दिशा का प्रयोग किया है 'नीशरपुर' दिया गया है। फिरिस्ता के लीथो संस्करण (रा० : १ : २९० )। में 'दीरहपुर' दिया गया है। कर्नल ब्रिग्गस ने 'हीरपुर' पाद-टिप्पणी : लिखा है। कैम्ब्रिज हिस्ट्री आफ इण्डिया ( २८३ ) १६८. (१) दुर्योधन : धृतराष्ट्र पिता एवं तथा रोजर्स ने लिखा है कि हाजी खाँ भीमवर आया। गान्धारी माता के शत पुत्रों में ज्येष्ठ । महाभारत परन्तु तवक्काते अकबरी तथा फिरिस्ता ने लिखा है युद्ध का कारण । व्यास ने महाभारत में नाटक कि वह शूरपुर या हीरपुर जाकर, तब भीमवर गया। के खलनायक पात्र तुल्य उसका चित्रण किया है। पाद-टिप्पणी: गदायुद्ध में दक्ष था। सच्चा मित्र था। दुर्योधन १६७. ( १ ) दक्षिण दिशा : मृत्यु की दिशा युधिष्ठिर से छोटा था। दुर्योधन एवं भीम का जन्म
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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