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________________ १:१.१०४-१०७] श्रीवरकृता स पिता त्वं सुतस्तस्य वयं सर्वे स्वसेवकाः । गत्वा चेत् कुमेहे युद्धं जयोऽस्माकं भवेत् कथम् ।। १०४ ॥ १०४. 'वह पिता, तुम पुत्र, हमसे अपने सेवक जानकर यदि युद्ध करें, तो हमलोगों का जय कैसे हो सकता है ? हताश्चेत् केपि तभृत्याः बहुभृत्यस्य का क्षतिः । एकपक्षक्षये किं स्याद् गरुडस्य जवाल्पता ॥ १०५ ॥ १०५. 'यदि उसके कुछ भृत्य हत हो गये, तो बहुभृत्य वाले उसकी क्या क्षति ? एक पक्ष के नष्ट होने से क्या गरुड़ के वेग में अल्पता होगी? । न शिवाः शकुनाः सन्ति देशाः पर्वतदुर्गमाः। तत्रापि जनकस्तेऽस्मान्न कालो विग्रहस्य नः ॥ १०६ ॥ १०६. 'कल्याण मंगलकारी शकुन' नही है । देश, पर्वत दुर्गम है। वहाँ तुम्हारे पिता हैं । इसलिये हमलोगों के युद्ध का समय नहीं है। भजत्वभ्यन्तरं राजा वयं बाह्यं भजामहे । तत्प्रसादादिहैवास्तां राज्यं छत्रं विना न किम् ।। १०७ ॥ १०७. 'राजा अन्दर (देश में) रहे। हमलोग बाहर तथापि उसकी कृपा से, यहीं पर बिना छत्र का राज्य नहीं है क्या ? पाद-टिप्पणी: परन्तु मस्तक, पंख, चंचु तथा पाद गृद्ध तुल्य है। १०५. (१) गरुड़ : विष्णु का वाहन पक्षी मुख-श्वेत, पंख-लाल तथा शरीर का वर्ण सुवर्ण है। है। एक मत है कि श्येन गरुड़ का वेदकालीन नाम है, बद्रीनाथ यात्रा मार्ग मे एक गरुड़गंगा मिलती है । अनन्तर संस्कृत साहित्य मे श्येन का अर्थ वाज दिया स्कन्दपुराण के अनुसार गरुड़ ने यहाँ तपस्या किया गया है। गरुड़ स्वर्ग से अमृत लाया था। कश्यप था । यहाँ पर निर्मल जलमय एक कुण्ड है । मान्यता एवं वनिता का पुत्र तथा अरुण का कनिष्ठ बन्धु था। है कि कुण्ड में स्नान करने पर सर्प भय नही रहता। गरुड़ अण्ड से बाहर निकलते ही वेग से आगे गरुडपुराण में लगभग १९००० श्लोक है । किसी की बढ़ा और उड़ गया । अमृत प्राप्ति के लिये गरुड़ आ मृत्यु होने पर अशौच काल में ही गरुडपुराण सुनने रहा है, जान कर इन्द्र ने गरुड़ पर प्रहार किया, का महत्त्व है। इसमें यमपुर, स्वर्ग आदि का उसका केवल एक पक्ष क्षत हुआ। विस्तृत वर्णन है। गरुड़ की उपासना करने वाला मत्स्यपुराण के अनुसार विश्ववेशा के पुत्र है प्राचीन काल में एक सम्प्रदाय भी था। (१७१ : २०)। निवास स्थान शाल्मलि पाद-टिप्पणी : द्वीप है ( भाग० : ५ : २० : ८)। क्षीरोद का १०६. (१) शकुन : मुसलमान हो जाने पर रक्षक है। भागवत के अनुसार दक्षप्रजापति को भी काश्मीरी जनता पूर्व हिन्दू संस्कारों को पूर्णतया पुत्री सुपर्णा विनता के गर्भ से उत्पन्न कश्यप का त्याग नहीं सकी थी। शकुन, मंगल एवं अमंगल पुत्र है ( भाग०.६ : २२, ३ : १९ : ११; ब्रह्म चिह्नों पर काश्मीरी पूर्वकाल में विश्वास करते थे ३:७ : २९, ८:११ ) । इनका शरीर मनुष्य और आज भी साधरण जनता विश्वास करती है।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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