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________________ १ : १ : ९१ - ९४] अमी राजपुरीयाद्याः सर्वेऽस्मच्छुभकाङ्क्षिणः । तत् तेनैवाधुना यामो न किं सिध्यति साहसात् ।। ९१ ॥ ९१. 'राजपुरी आदि सब हम लोगों के शुभाकांक्षी हैं अतएव हमलोग अभी जायेंगे । साहस से क्या सिद्ध नही होता ? श्रीवरकृता मृते रिगप्रतीहारे वीराः के सन्ति तत्पुरे । इति त्वत्पैतृकपदं हर्तुं गन्तुं तवोचितम् ।। ९२ ॥ ९२. 'रिग' प्रतीहार के मरने पर, उसके नगर में कौन बीर है ? अतः अपना पैतृक पद प्राप्त करने के हेतु तुम्हारा जाना उचित है । शिष्यास्तेऽमी वयं भृत्या वीरास्त्वत्पैतृकैः सह । योत्स्यामः कीदृशं शौर्यमेकदा द्रष्टुमर्हसि ॥ ९३ ॥ ९३. 'हम लोग तुम्हारे बीर शिष्य एव भृत्य तुम्हारे पैतृक जनों के साथ युद्ध करेंगे। एक बार आप पराक्रम देखे ।' तथेत्युक्त्वाथ खानेन पृष्टौ तन्मन्त्रिणौ मतम् । ३५ स फिर्यडामरस्ताजतन्त्रेशश्चेत्यवोचताम् ।। ९४ ।। ९४. 'ऐसा ही हो' - यह कहकर, खाँन द्वारा मत पूछने पर, फिर्यं डामर तथा ताज तन्त्रेश ने इस प्रकार कहा पाद-टिप्पणी : ९१ १) राजपुरी: राजौरी । पाद-टिप्पणी : ९२. ( १ ) रिग : श्रीदत्त ने 'रिंग' के स्थान पर 'अगिर' नाम दिया है ( २ : १०६ ) । पाद-टिप्पणी : ९३. (१) पाठ - बम्बई । पाद-टिप्पणी : श्रीदत्त ने 'सफिर्य डामर' अनुवाद 'फिर्य डामर' के स्थान पर किया है ( पृष्ठ १०७ ) । ९४ ( १ ) डामर : परशियन इतिहासकारों ने इन्हें ग्रे नाम से सम्बोधित किया है । क्षेमेन्द्र कल्हण, जोनराज, श्रीवर, शुक ने डामरों का उल्लेख किया है । राजतरंगिणियों के अतिरिक्त क्षेमेन्द्र की समयमातृका तथा लोकप्रकाश में डामरों का उल्लेख किया गया है । कल्हण से एक शताब्दी पूर्व क्षेमेन्द्र ने काली को डामर समरसिंह के घर ठहरा कर, यह दिखाने का प्रयास किया है कि डामरो का मकान अच्छा एवं सुख प्रसाधनों ने पूर्ण रहता था । सेण्ट पीटर्सवर्ग के कोश में डामर को विद्रीही तथा लड़ाकू लिखा गया है। प्रोफेसर एच० कर्न ने डामर का अर्थ 'वोजर' अर्थात् वैरन अथवा जमीन्दार लगाया है । अल्बेरुनी ने ईशान दिशा में स्थित देशों के साथ डामरों का उल्लेख किया है । दर्व के पश्चात् ही वह डामर शब्द का प्रयोग कर दिखाना चाहता है कि काश्मीर के सीमावर्ती दव के पड़ोस में ही डामर निवास करते थे ( १ : ३०३ ) । देश के रूप में अल्बेरूनी ने डामरों का उल्लेख किया है किन्तु काश्मीर के डामरों की कुछ और परिस्थिति थी । काश्मीर में डामर भूस्वामी थे । कुलीन थे । भूमि पर निर्वाह करने वाला वर्ग था सामन्त वर्ग था । ।
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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