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________________ जैन राजतरंगिणी 1 राजानकप्रतीहारमार्गेश कुलजादयः अस्मत्प्रतीक्षिणः सर्वे तत्र वीरा बलोद्धताः ॥ ८८. राजानक', प्रतीहार एवं मार्गेश वंशीय आदि वलोद्धत सब प्रतीक्षा में हैं । ३२ पाद-टिप्पणी : ८८. (१) राजानक: परशियन इतिहासकार राजानक का समानवाची शब्द रैना तथा राजदान देते है । इस समय रैना तथा राजानक दोनों जातिवाचक शब्द प्रचलित है । राजाओं द्वारा प्रदत्त एक उपाधि थी । हिन्दू राज्यकाल मे राजवंशियों एवं विशिष्ट राजपुरुषों को दी जाती थी । कल्हण ने इस पदवी का उल्लेख किया है ( रा० : ६ : ११७, २६१; ४ : ४८९ ) । मुसलिम राज्यकाल मे पुरानी प्रथा चलती रही । मूलतः यह सम्राटों की पदवी थी, जो कालान्तर में करद तथा छोटे राजाओं को दी जाने लगी थी । राजानक, राजनिका, राजनायक एवं राजान एक ही मूल शब्द के भिन्न-भिन्न रूप है। काश्मीर के राजदान ब्राह्मण किसी समय राजानक उपाधिधारी थे । जोनराज को राजानक की पदवी प्राप्त थी। इसी प्रकार राजान शृंगार तथा राजानक जयानक को यह उपाधि प्राप्त थी । श्रीवर के समय राजानक एवं राजान शब्द का प्रचुर प्रयोग मिलता है ( श्रीवर० : ११ : ८८; ३ : ४८२-४; २९५, ३५३, ४२४, ५८२ ) । शुक ने ( १ : १६ : २०, ३६, ३७, २०, ६४, ६७, ७०, ७६, ९१, १०३, १२७, १२८, १४१, १४६, १७१, १७५ ) | हिमाचल आदि पर्वतीय देशों में राजानक प्रथलित उपाधि थी । राजाओं को भी राजानक कहा गया है । ताम्रपत्रों एवं मुद्राओं पर राजानक उपाधि टंकणित मिलती है । चम्बा राज्य के अभिलेखों तथा ठक्कुरों के साथ राजानक पदवी का उल्लेख मिलता है । रणपुत्र से राणा शब्द उसी प्रकार निकला है जिस प्रकार राजपुत्र से राजपूत । राजानक का सबसे [ १ : १ : ८८ ८८ ॥ वीर वहाँ पर हमलोगों प्राचीन प्रयोग हिमगिरी परगना चम्बा मे मिलता है । खान्दानी जमीन्दारों को राजानक पदवी दी जाती थी । सुदूर प्राचीन काल में पर्वतीय भूमि स्वामियों, जो यूरोप के बैरनों के समान थे, दी जाती थी । कीरग्राम के लक्ष्मणचन्द्र के साथ यह पदवी मिलती है । कालान्तर में काश्मीर और चम्बा में यह पदवी दी जाने लगी । काश्मीर में राजान्यक किंवा राजानक कालान्तर में एक वंश एवं काश्मीरी ब्राह्मणों की उपजाति माना जाने लगा है । आनन्द राजानक के वंश प्रशस्ति ( सत्तरहवीं शताब्दी ) का, जिसे नैषधचरित भाष्य में लिखा है, उसमे राजानक शब्द का प्रयोग किया गया है । यह पदवी त्रिगर्त अथवा कागडा में भी प्रचलित थी । राजान्यक एवं राजक शब्दों के अर्थ में अन्तर है । संस्कृत साहित्य मे राजक लघु राजाओं किंवा उनके समूह के लिये एवं राजान्यक क्षत्रिय योद्धाओं के लिए प्रयुक्त किया गया है । अशोक के शिलालेखों में उच्च पदाधिकारियो के लिये राजुक शब्द का प्रयोग किया गया है । राजानक शब्द नारायण पाल के भागलपुर फलक ( आई० ए० : भय० : १५: पृ० : ३०४, ३०६ ); मध्यम राजदेव सीलोद्भववंश के परिकड फलक ( ई० आई० : ११ : २८१, २८६ ) में उल्लेल किया गया है । राजन्य शब्द लक्ष्मणसेन के अनुदान में उल्लिखित है । ( ई० आई०. १२ : ६, ९ ) । पाणिनी ( ईशा पूर्व ६०० - ३०० वर्ष ) ने राजन्य शब्द का व्यवहार जिस अर्थ में किया है, वही अर्थ अमरकोशकार ( चौथी शती ) तथा कालान्तर मे कल्हण ने (बारहवी शती) किया है । सन् १९४३ ई० में चम्बा अभिलेखों में राजानक की पदवी ललितवर्मा ने दी थी, उल्लेख मिलता है। कुछ स्थानों पर राजनक को राजान से
SR No.010019
Book TitleJain Raj Tarangini Part 1
Original Sutra AuthorShreevar
AuthorRaghunathsinh
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1977
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size35 MB
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